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जानिए फ़िल्मी दुनिया की कुछ अनदेखी अनसुनी कहानियाँ….

नई दिल्ली: सनकी पति के जुल्मों की हद होने पर एक युवती मौका मिलते ही घर से गायब हो जाती है । दूसरे शहर में दूसरे नाम से रहने लगती है । एक रईस कारोबारी से दूसरी शादी भी कर लेती है । कुछ अर्से बाद सनकी पति उससे टकराता है और हर हाल में उसे फिर हासिल करना चाहता है । यह नेन्सी प्राइस के उपन्यास ‘ स्लीपिंग विद द एनेमी ‘ की थीम है । हॉलीवुड ने 1991 में इसी नाम से चुस्त – दुरुस्त फिल्म बनाई । अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स की यह सबसे कामयाब फिल्म है ।

बॉलीवुड में एक साथ फिल्मकारों ने स्लीपिंग विद द एनेमी ‘ की कहानी पर हाथ मारा । डेविड धवन ने ‘ याराना ‘ ( माधुरी दीक्षित , ऋषि कपूर , राज बब्बर ) बनाई । अनु मलिक ने नुसरत फतेह अली खान की एक कव्वाली की धुन जस की तस उठाकर इस फिल्म में ‘ मेरा पिया घर आया ‘ के तौर पर पेश की । फिल्म नहीं चली । यही हश्र अब्बास – मस्तान की ‘ दरार ‘ ( जूही चावला , ऋषि कपूर , अरबाज खान ) का हुआ । कामयाबी मिली पार्थो घोष की ‘ अग्निसाक्षी ‘ को । विलायती कहानी को इस फिल्म में सलीके से भारतीय परिवेश में ढाला गया । हाल ही इसने प्रदर्शन के 25 साल पूरे किए हैं ।


पार्थो घोष को ‘ दलाल ‘ , ‘ हंड्रेड डेज ‘ और ‘ तीसरा कौन ‘ के लिए भी जाना जाता है । ‘ अग्निसाक्षी ‘ उनकी सबसे कामयाब फिल्म साबित हुई । कसी हुई पटकथा और सधे हुए निर्देशन के अलावा नाना पाटेकर तथा मनीषा कोइराला की लाजवाब अदाकारी ने फिल्म में चार चांद लगाए । सनकी पति के किरदार को नाना पाटेकर ने बगैर चीखे – चिल्लाए ( यह काम उन्होंने कई दूसरी फिल्मों में खूब किया ) अलग अंदाज में अदा किया । जब वह पर्दे पर नहीं होते , तब भी इस किरदार की सनक महसूस होती है ।

अलग – अलग जगह यह सनक अलग सतह पर नजर आती है । एक सीन में मनीषा के साथ मारपीट के बाद जनाब उन्हें सहलाते हुए कहते हैं , ‘ जख्म मैंने दिए हैं , मरहम भी मैं ही लगाऊंगा । ‘ गायब हुईं मनीषा को ढूंढने के बाद उनका घुटे हुए अंदाज में दुनिया बहुत छोटी है । यहां कोई ऐसी जगह नहीं , जहां तुम मुझसे छुप सको ‘ कहना उनके शातिर दिमाग की एक और परत खोलता है ।

”अग्निसाक्षी’ के लिए नाना पाटेकर ने करियर का तीसरा नेशनल अवॉर्ड ( सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता ) जीता । इससे पहले उन्हें ‘ परिंदा ‘ (सह-अभिनेता) और क्रांतिवीर ‘ ( अभिनेता ) के लिए नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया था । ‘ अग्निसाक्षी के दौर में मनीषा कोइराला के सितारे भी बुलंद थे । उनकी ‘ बॉम्बे ‘ , ‘ अकेले हम अकेले तुम ‘ , ‘ खामोशीः द म्यूजिकल ‘ , ‘ गुप्त ‘ आदि उसी दौर की फिल्में हैं ।

पार्थो घोष ने बाद में उन्हें और नाना पाटेकर को लेकर ‘ युगपुरुष ‘ बनाई । इस बार कामयाबी का समीकरण गड़बड़ा गया । ‘ अग्निसाक्षी ‘ के वाद ‘ स्लीपिंग विद द एनेमी ‘ का किस्सा बांग्ला और दक्षिण की कुछ फिल्मों में भी दोहराया गया । इनमें बांग्ला अभिनेत्री देवश्री रॉय की ‘ भोय ‘ और तमिल अभिनेत्री सिमरन की ‘ अवल वरुवाला ‘ शामिल हैं ।

निर्देशक विनय शुक्ला ने इसी पर 2002 में कोई मेरे दिल से पूछे बनाई । इस कमजोर फिल्म की कोई पूछ – परख नहीं हुई । इसमें संजय कपूर सनकी पति के किरदार में नाना पाटेकर की पैरोडी से आगे नहीं जा पाए । नायिका ईशा देओल भी कुछ खास नहीं कर सकीं ।

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