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याद उन्हें भी कर लो जो लौटकें घर ना आए : आज के दिन हुए 1942 में आज के दिन ही प्रयागराज के छात्रों का नेतृत्व करते शहीद हुए थे लाल पद्मधर सिंह

रीवा। 12 अगस्त आज का वह दिन जब अंग्रेजो के खिलाफ भारत जोड़ो आंदोलन के दौरान विंध्य प्रयाग राज पढाई के लिए गए छात्र लाल पद्मधर सिंह ने शहीद हुए थे। उनकी शहादत के बाद देश में आजादी को लेकर एक बड़ा छा़त्र आंदोलन खड़ा हो गया है। विंध्य के इस 29 साल के छा़त्र ने सिर्फ इसलिए विवाह नहीं किया है वह नहीं चाहता था कि उसकी संतान गुलाम भारत में हो यहां। तक देश की आजादी के बाद ही अपनी शादी करने की बात कही थी। बता दें कि 12 अगस्त 1942 को प्रयागराज में इलाहाबाद विश्व विद्यालय के छात्रों की रैली लेकर वह जा रहे थे। उन्होंने पहले ही घोषणा कर दी थी कि इलाहाबाद की जिला कचहरी ;कलेक्ट्रेट में तिरंगा झंडा फहराएंगे। उनके साथ बड़ी संख्या में छात्र सड़कों पर उमड़ पड़े थे। वह आगे बढ़ ही रहे थे कि इसी दौरान बीच रास्ते में अंग्रेज सैनिकों ने रोक लिया। वापस जाने के लिए कहा। लेकिन वह पीछे जाने को तैयार नहीं थे। अंग्रेजों की पुलिस ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। पहले उन्होंने साथ में गए छात्रों की जान बचाने के लिए सभी को लेट जाने के लिए कहा। खुद तिरंगा लिए थे और कहा कि वह तिरंगे की शान कम नहीं होने देंगे। वह लहराते हुए तिरंगा आगे बढ़ रहे थे। सामने से गोलियां चल रही थी। इसी बीच उन्हें भी गोली लगी और गिर पड़े। इस दौरान उन्होंने झंडे को नीचे नहीं गिरने दिया। उनकी शहादत के बाद दूसरे छात्रों ने झंडा थामा और ऐसी शहादत के बाद आक्रोश और भड़क उठा। कई दिनों तक विश्वविद्यालय के छात्र शहर की सड़कों पर प्रदर्शन करते रहेैइसका असर देश के दूसरे विश्वविद्यालयों और कालेजों तक भी पहुंचा और देश में नया छात्र आंदोलन खड़ा हो गया।

सतना के कृपालपुर निवासी थे लाल पद्मधर

शहीद लाल पद्मधर सिंह मूल रूप से सतना जिले के कृपालपुर गांव के निवासी थे। जमीदार परिवार में वह जन्मे थे। रीवा से स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था। इनके पूर्वज पहले भी स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई का हिस्सा बन चुके थे। इनके दादा धीर सिंह 1857 की जंग में शामिल हुए थे। लिहाजा इन पर भी स्वतंत्रता के लिए जज्बा कूट.कूट कर भरा था। जैसे ही महात्मा गांधी ने ष्अंग्रेजों भारत छोड़ोष् का नारा दिया। इसके साथ ही पूरा देश उबल पड़ा था।

राजपूत प्रभात नामक पत्रिका की थी शुरुआत

लाल पद्मधर सिंह का जन्म कृपालपुर के जमींदार घराने में हुआ था। उस दौर में इन परिवारों के लोगों को बड़ा सम्मान मिलता था। नाम के साथ लाल साहब का संबोधन दिया जाता था। सरल स्वभाव के पद्मधर सिंह क्षेत्र में अपने नाम से अधिक लाल साहब के नाम से जाने जाते थे। शुरू से ही वह सबको समान सम्मान देने का काम करते थे। संवेदनशीलता के साथ ही आत्मस्वाभिमान भी अधिक था। वह लोगों से विनम्रता के साथ संवाद करते थे इसलिए लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही थी। साथ ही आत्म सम्मान के खिलाफ खुलकर विरोध भी करते थे। वह जब कक्षा आठ में पढ़ते थे तब विज्ञान की प्रयोगशाला से प्रिज्म चोरी हो गया। तत्कालीन प्रधानाध्यापक टोपे ने सभी छात्रों के साथ उन पर बिना सबूत के आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि मैं निर्दोष हूं तब भी उनके खिलाफ टोपे ने अपशब्दों का प्रयोग किया। इससे आहत होकर उन्होंने गोली चला दी और टोपे घायल हो गया। इस अपराध पर सात वर्ष की सजा सुनाई गई। हालांकि अच्छे आचरण की वजह से तीन वर्ष के बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया।

उनकी शादी के लिए तमाम इलाकेदार परिवारों से रिश्ते आते थे लेकिन उनका कहना था कि वह साधारण परिवार में शादी करेंगे। यह तब करेंगे जब देश को आजादी दिलाने में सफल हो जाएंगे। वह नहीं चाहते थे कि उनकी संतानें आजाद भारत में पैदा हों। उनकी एक बार शादी तय हुई वह अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करना चाह रहे थे इसलिए तिलक लौट गयाए जिससे परिवार के लोग भी नाराज हो गए थे।

वह पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय गए तो वहां छात्रों को नया नेतृत्व प्रदान किया। । उस दौरान नयन तारा सहगल;पंडित नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित की पुत्री के हाथ में तिरंगा था उनकी ओर बंदूक तानी गई तो नयनतारा को बचाने के लिए पद्मधर सिंह ने तिरंगा हाथ में लिया और उन्हें लेट जाने को कहा। आगे बढ़ते गए और गोली लगने से शहीद हो गए। पद्मधर सिंह का साहित्य से भी गहरा लगाव रहा है। उन्होंने राजपूत प्रभात नामक पत्रिका की शुरुआत की थी। इसके अलावा अन्य कई पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं

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