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World Tiger Day : बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत प्रदेश के दूसरे टाइगर रिजर्वों से लाए गए 7 बाघों में से जीवित सिर्फ दो बचे

पन्ना टाइगर रिजर्व में इन दिनों शावकों सहित 90 से भी अधिक बाघ हैं। डेढ़ दशक से भी कम समय में शून्य से बाघों के आंकड़े को शिखर तक पहुंचाने वाले संस्थापक बाघों की पीढ़ी अब खत्म होती जा रही है। बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत प्रदेश के टाइगर रिजर्वों से पन्ना लाए गए सात बाघों में से अब सिर्फ दो ही जीवित बचे हैं। उनमें से टी-2 बुजुर्ग हो गई और जीवन के अंतिम पड़ाव में है। जबकि, बाघिन टी-6 ही एक मात्र ऐसी संस्थापक बाघिन है जो अभी शावकों को जन्म दे रही है। उसके 7वें लिटर की उम्मीद जताई जा रही है।

शिकारी गतिविधियों और डकैतों के मूवमेंट के चलते 2008 में पन्ना टाइगर रिजर्व को बाघ विहीन घोषित कर दिया गया था। इसके बाद तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर श्रीनिवास मूर्ति के नेतृत्व वाली टीम को यहां बाघों को दोबारा बसाने का अवसर मिला, तो इस टीम ने जी जान लगा दिया। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से बाघिन टी-1 और कान्हा से बाघिन टी-2 को वर्ष 2009 में पन्ना लाया गया। बाघों का संसार दोबारा आबाद करने के लिए नर बाघ टी-3 को पेंच टाइगर रिजर्व से लाया गया। टी-2 पन्ना टाइगर रिजर्व की सबसे सफल बाघिन रही। उसने 7 लिटर में 21 शावकों को जन्म दिया। अब वह जीवन के अंमित पड़ाव में है। टी-3 फादर ऑफ पन्ना टाइगर रिजर्व कहलाया। रिजर्व में आज जितने भी बाघ हैं सब उसी की संतानें मानी जाती हैं। बाघ टी-3 को जब कॉलर हटाया गया तो वह करीब 18 साल का था और उसे तीन साल से देखा नहीं गया है।

अनाथ बाघिनों ने रचा इतिहास

कान्हा टाइगर रिजर्व के बाड़े में पली बढ़ी बाघिन टी-4 को मार्च 11 में पन्ना लाया गया। यह दुनिया की पहली ऐसी बाघिन बनी जो स्वयं अनाथ रहकर भी जंगली बनकर दो शावकों की मां भी बनी। टी-4 ने अपने दो लिटर में कुल पांच शावक जन्मे। इसकी मौत 2014 में हो गई थी। इसी बाघिन की अनाथ बहन टी-5 को नवंबर 2011 में लाया गया। टी-5 ने दो लिटर में तीन शावकों को जन्मा। इसकी मौत 2018 में हो गई थी। साल के शुरुआत में जनवरी में ही संस्थापक बाघिन टी-1 के मौत की जानकारी सामने आई।

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