मध्य प्रदेशरीवालोकसभा चुनाव 2024

सफ़ेद शेरों की धरती है रीवा, यहाँ की सफारी में घूमते है कई सफ़ेद शेर

आज हम आपको बताने जा रहे है देश और प्रदेश की शान रीवा के सफ़ेद शेरों कि धरती के बारे में जिसे आज हर कोई जानना चाहता है।

1951 से शुरू हुआ सफ़ेद शेरों का दौर
रीवा के सफ़ेद शेरों का दौर 1951 में शुरू हुआ। 27 मई 1951 को सीधी के कुसुमी क्षेत्र के पंखोरा गाँव के पास के जंगल में सफ़ेद शेर का एक बच्चा पकड़ा गया था। वहीं इस सफ़ेद शेर के बच्चे को गोविंदगढ़ के क़िले में रखा गया।

इसके बाद 1955 में पहली बार एक सामान्य बाघिन के साथ सफ़ेद शेर मोहन की कई बार ब्रीडिंग करायी गई लेकिन इसका कोई असर नहीं देखने को मिला और एक भी सफ़ेद शावक नहीं पैदा हुआ।

इसके बाद 30 अक्तूबर 1958 को मोहन के साथ रहने वाली बाघिन राधा ने चार शेर के बच्चों को जन्म दिया जिसका नाम मोहिनी, सूकेशी, रानी और राजा दिया गया। इसके उपरांत अमेरिका में राष्ट्रपति की इच्छा के बाद मोहिनी नाम की बाघिन को 5 दिसंबर 1960 को अमेरिका ले जया गया और वहाँ उसका भव्य रूप से स्वागत किया गया।

19 वर्षों तक जीवित रहे तीन मादाओं के साथ सफ़ेद शेर मोहन का संपर्क हुआ। वहीं गोविंदगढ़ में लगातार सफ़ेद शेर पैदा होते गये। मोहन के संपर्क से कुल 34 बच्चों का जन्म हुआ जिस्म से 21 सफ़ेद थे और 14 राधा नाम की बाघिन के थे।

मोहन की मौत के बाद लगा ग्रहण
10 दिसंबर 1969 को मोहन की मौत हो गई और इसे गोविन्दगढ़ क़िला परिसर में ही राजकीय सम्मान के साथ दफ़ना दिया गया। इसके बाद 8 जुलाई 1976 को आख़िरी बाघ के रूप में बचे विराट की भी मृत्यु हो गई। इसके बाद 40 सालों तक रीवा की धरती सफ़ेद शेरों से सूनी रही।

व्हाइट टाइगर सफारी का हुआ निर्माण
9 नवंबर 2015 को वाइट टाइगर सफारी में विंध्या नाम की सफ़ेद शेरनी को लाया गया। तब से लेकर अब तक यहाँ कई सफ़ेद शेर है। वहीं अब ये व्हाइट टाइगर सफारी देश विदेश के लोगों के लिए पर्यटन का केंद्र बन गया है।

Related Articles

Back to top button