अलविदा ‘भारत के रतन’; एक युग का अंत : उद्योग जगत के पितामह रतन टाटा का निधन

मुंबई. भारतीय उद्योग जगत में पितामह की हैसियत रखनेवाले प्रसिद्ध उद्योगपति और टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन नवल टाटा का यहां बुधवार को ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया। वह 86 वर्ष के थे। पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे रतन टाटा को सोमवार को उम्र संबंधी बीमारियों के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बुधवार को उनकी स्थिति गंभीर हो गई। डॉक्टरों की टीम उनके स्वास्थ्य पर नजर बनाए हुए थी लेकिन, तमाम कोशिशों के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका। भारतीय उद्योग में योगदान के लिए उन्हें 2000 में पद्म भूषण और 2008 में पदा विभूषण से सम्मानित किया गया था।

  • ■ मुंबई के ब्रीच कँडी अस्पताल के आइसीयू में ली अंतिम सांसें
  • ■ वर्ष 2000 में पद्म भूषण और 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित

गुजरात के नवसारी में 28 दिसंबर, 1937 को जन्मे रतन टाटा, टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के परपोते थे। उन्होंने समूह को अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक पहुंचाया और उदारीकरण के दौर में समूह को उसके हिसाब से ढाला। रतन टाटा मार्च 1991 से 28 दिसंबर 2012 तक टाटा समूह के अध्यक्ष रहे। उसके बाद 2016-2017 तक एक बार फिर उन्होंने समूह की कमान संभाली। उसके बाद से वह समूह के मानद चेयरमैन की भूमिका में आ गए थे।

शोक की लहरः ‘राष्ट्र के ढांचे को दिया आकार’
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत सभी बड़े राजनेताओं नेरतन टाटा के निधन को अपूरणीय क्षति बताते हुए दुख प्रकट किया है। टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने कहा, हम अत्यंत क्षति की भावना के साथ रतन नवल टाटा को विदाई दे रहे हैं। वास्तव में एक असाधारण नेता हैं जिनके अतुलनीय योगदान ने न केवल टाटा समूह बल्कि हमारे राष्ट्र के मूल ढांचे को भी आकार दिया है।

दुनिया में जमाई भारत की धाक
लखटकिया नैनो की शुरुआत, टेटली-जगुआर का अधिग्रहण

टाटा ने अपने दो दशक के नेतृत्व में समूह के विविधीकरण और आइटी, स्टील, ऑटोमोबाइल और आतिथ्य जैसे क्षेत्रों में विस्तार की देखरेख की। 2008 में एक लाख की कार टाटा नैनो की शुरुआत, जिसका उद्देश्य लोगों के लिए सस्ती कारें उपलब्ध कराना था, उनकी प्रमुख उपलब्धियों में से एक है। उनके मार्गदर्शन में, टाटा समूह ने टेटली, जगुआर लैंड रोवर और कोरस सहित प्रमुख वैश्विक अधिग्रहण भी किए।

इसीलिए अलग थे टाटा
■ परोपकारी नजरिया
अ पने व्यावसायिक कौशल से परे रतन टाटा अपने परोपकारी दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे। टाटा ट्रस्ट के माध्यम से, जो टाटा समूह के अधिकांश शेयरों को नियंत्रित करता है, उन्होंने स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और ग्रामीण विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
■ नवाचार को बढ़ावा
टाटा ने स्टार्टअप और उद्यमिता का भी समर्थन किया, युवा इनोवेटरों में निवेश किया और टाटा कैपिटल और टाटा स्टार्ट-अप हब जैसे उपक्रमों के माध्यम से भारत में नवाचार की भावना को बढ़ावा दिया। उन्होंने युवाओं को हमेशा आगे बढ़ने में मदद की।
■ धर्मार्थ किया दान
र तन टाटा अपने पीछे व्यवसाय नेतृत्व, वैश्विक विस्तार और सामाजिक बेहतरी के प्रति गहरी प्रतिबद्धता की एक गहरी विरासत छोड़ गए हैं, उन्होंने कथित तौर पर अपनी आय का 60-65 फीसदी धर्मार्थ कार्यों के लिए दान कर दिया है। वे देश में दान देने वाले सबसे बड़े उ‌द्योगपति थे।

  • खो गया राष्ट्र निर्माण का प्रतीक
    रतन टाटा के दुखद निधन से भारत ने एक ऐसे प्रतीक को खो दिया है जिसने राष्ट्र निर्माण के साथ कॉरपोरेट विकास और नैतिकता के साथ उत्कृष्टता का मिश्रण किया। उन्होंने महान टाटा विरासत को आगे बढ़ाया और इसे और अधिक प्रभावशाली वैश्विक उपस्थिति प्रदान की।
    द्रौपदी मुर्मु, राष्ट्रपति