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त्रेयतायुग में एक रात में बना देवतालाब का शिवमंदिर…. सूर्य की दिशा अनुसार बदलता है शिवलिंग का स्वरुप, पूरी होती है मनोकामना

रीवा। एक पत्थर में एक रात में देवतालाब में बना भगवान शिव मंदिर का यह मंदिर जितना दिव्य है उतना ही यहां मंदिर की शिवलिंग। यहीं कारण है कि इस दिव्य मंदिर में हर मनोकामना पूरी होती है। इस मंदिर से जुड़ी दिव्य घटनाओं ने लोगों के धार्मिक विश्वास को बढ़ाया है। यही कारण है कि सावन महीने, महाशिवरात्रि जैसे पर्व में मंदिर लोग अपनी मनोकामना लेकर आते है और पूरी भी होती है।

इस मंदिर को लेकर जनश्रुति है कि इस मंदिर का निर्माण त्रेयतायुग में भगवान विश्वकर्मा ने कराया था। इस मंदिर में दिव्य शिल्पकाल इसका स्वंय प्रमाण देती है। यह पूरा मंदिर एक विशाल पत्थर पर निर्मित है। बताया जा जा है देवतालाब का मंदिर जितना ऊ ंचा बाहर है। मंदिर के अंदर जाने के गर्भ गृह जाने का रास्ता आज भी है। वहीं इस मंदिर के शिवलिंग भी दिव्य है। मंदिर के शिवलिंग पर एक निशान है जो कि सूर्य की दिशा अनुसार बदलता है। साथ ही इस दिव्य शिवलिंग की प्रतिमा भी अपने आकार में चार समय में परिवर्तन करती है। इन दिव्य घटनाओं के कई बार प्रमाण सही साबित हुए है। यहीं कारण है पूरे विंध्य में देवतालाब के मंदिर का मंदिर प्रसिद्ध है। वर्तमान इस मंदिर को देखदेख प्रशासन कर रहा है। प्रतिवर्ष इस मंदिर में भव्य मेला आयोजित होता है।



यह है मंदिर की कहानी –

बताया जा रहा है यह मंदिर श्रीरंगी ऋषि की तपोस्थली थी। इस स्थान पर बैठकर उन्होंने तपस्या की थी। इस पर भगवान शिवशंकर साक्षात प्रगत होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा है। इस पर उन्होनें इस तपोस्थली भूमि एक रात में भगवान की मंदिर एवं शिवलिंग के रुप में उनकी स्थापना का वर मांगा था। इसके बाद भगवान शिव ने उनकी इच्छा अनुसार रात मे भी भगवान विश्वकर्मा से एक पत्थर में दिव्य मंदिर बनाया है। यहां तक सुबह होने के एक मंदिर अधूरा ही रहा गया। वहीं भगवान शिव की स्थापना ज्योर्तिलिंग के रुप में हुई। इसके बाद श्रीरंगी ऋषि इस स्थल को लोगों के कल्यार्थ छोडक़र चित्रकूट चले गए है। तभी इस मंदिर में कई बार चमत्कारी घटनाओं ने लोगों की धािर्मक भावनाओं को बढ़ा दिया है। वर्तमान में यह मंदिर जिले के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों पर है।

धार्मिक तीर्थ यात्री मानी जाती है अधूरी –

बताया जा रहा है देवतालाब मंदिर शिवलिंग को लेकर मान्यता है कि तीर्थ यात्रा में जाने वाले यात्रियों को लौटकर देवतालाब स्थित इस मंदिर को दर्शन करना जरुरी है। बिना इनके दर्शन तीर्थ यात्रा अधूरी मानी जाती है और इसका फल नहीं मिलता है। यहीं कारण विंध्य व आसपास के लोग अब भी तीर्थ यात्रा के बाद लौटकर इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते है। इसके साथ ही रीवा से काशी बनारस मार्ग में स्थित इस मंदिर पूरे साल लोग बड़ी संख्या में आते है।

कैसे पहुँचे?

सबसे नजदीकी हवाई अड्डा प्रयागराज में है। रीवा की प्रयागराज से दूरी लगभग 125 किमी है। इसके अलावा रीवा, वाराणसी और जबलपुर से भी समान दूरी पर है जहाँ हवाईअड्डे हैं। इन दोनों शहरों की रीवा से दूरी लगभग 250 किमी है। दिल्ली, राजकोट, इंदौर, भोपाल और नागपुर जैसे शहरों से रीवा सीधे रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। देवतालाब मंदिर, रीवा रेलवे स्टेशन से मिर्जापुर मार्ग पर लगभग 60 किमी की दूरी पर स्थित है।

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