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पद्मश्री बाबूलाल दाहिया करेंगे देहदान : बेटे-नाती समेत 7 ने लिया संकल्प

सतना. पद्मश्री बाबूलाल दाहिया ने देहदान का संकल्प लिया है। बाबूलाल के साथ उनके बेटे, नाती और चार अन्य लोगों ने भी देहदान का संकल्प पत्र भरा। इस प्रकार सात लोग देहदान के लिए आगे आए हैं। शहर के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में देहदान को लेकर जागरूकता आई है। लायंस क्लब के कार्यक्रम में सोमवार को एक साथ इन्हीं सात लोगों ने देहदान करने का संकल्प पत्र भरा है। सभी का क्लब के सदस्यों ने सम्मान किया है।

देहदान केे लिए एक ही परिवार की तीन पीढ़ी पद्मश्री बाबूलाल दाहिया, उनके बेटे सुरेश दाहिया और नाती अनुपम दाहिया ने एक साथ कदम बढ़ाया है। जबकि एक अन्य परिवार से दो सगे भइयों ने अपना देह दान करने का निर्णय लिया। देहदानियों का मानना है कि मनुष्य के मरने के बाद मृत शरीर को जला दिया जाता है। मिट्टी में दफना दिया जाता है या फिर गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है। इससे अच्छा यह कि मेडिकल की पढ़ाई में काम आए।

मरने के बाद शरीर समाज के काम आए तो इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता है। चिकित्सा क्षेत्र में शोध के लिए मानव देह की आवश्यकता होती है। इस शोध के कारण ही मानव शरीर के कई रहस्य सामने आने के साथ विभिन्न तरह की बीमारियों के उपचार के लिए नवीन राह खुलती है। 10-12 वर्ष पहले मैंने इस तरह का मन बनाया था कि सतना में मेडिकल कॉलेज खुलते ही अपना शरीर दान कर दूंगा।

बाबूलाल दाहिया, पद्मश्री

चिकित्सा की पढ़ाई करने वालों के लिए मानव देह बेहद जरूरी है। अधिकांश मेडिकल कॉलेज इस समस्या से जूझते हैं। छात्र-छात्राओं को मानव देह नहीं मिल पा रही है। इस समस्या को देखते हुए हम 3 पीढ़ियों ने देहदान करने का संकल्प लिया।

सुरेश दहिया

अगर मरने के बाद भी हमारे अंग किसी और के काम आए, हमारी आंखों से कोई और दुनिया देख सके तो इससे बड़ा पुण्य नहीं हो सकता। ऐसे कई लोग होते हैं जिनकी किडनी, लीवर, हार्ट या ऑखे खराब हो जाती हैं और जिंदगी से निराश हो जाते हैं।

अनुपम दहिया

मरणोपरांत भी शरीर शोध व समाज के कार्य आ सके, इस भावना से संकल्प लिया है। जब दूसरों की मदद और सेवा में समय लगा रहे हैं तो फिर क्यों न इस शरीर को भी दूसरे के लिए सौंप दिया जाए। लायंस क्लब के कार्यक्रम में देहदान का संकल्प लिया है।

डॉ सदाचारी सिंह तोमर, सेवानिवृत्त

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सूर्य प्रकाश गौतम ने देहदान किया था। तब से मेरे मन में विचार आया कि मैं भी देहदान करूंगा। धरती पर मानव जीवन मिला तो उसे मृत्यु के बाद राख में बदलने से बेहतर है कि काया चिकित्सकीय शोध में कार्य आकर मानव कल्याण का सबब बने।

कैलाश अहिरवार

96 वर्ष की उम्र में मरणोपरांत शरीर दान करने का संकल्प लिया है। शरीर नश्वर है। मृत्यु तय है। ऐसे में मृत्यु के बाद भी हमारी काया मानव जीवन के किसी काम आ सके इस भावना से हम देहदान का संकल्प लेते हैं।

ब्रम्हारीचारी सिंह तोमर

पद्मश्री बाबूलाल दाहिया से देहदान के बारे में जानकारी लगी। जब मुझे पता चला कि उनके घर से तीन लोग संकल्प ले रहे हैं तो मैंने भी देहदान करने का निर्णय लिया। मेरे भाई बाल्मीकि सिंह, रामगोपाल सिंह रीवा मेडिकल कॉलेज में अपना देहदान का फॉर्म भर चुके हैं।

देवलाल सिंह पटेल


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