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चीनी कर्ज का भंवरजाल: वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, 70 देशों को इस साल चुकाना है 11 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज

दुनिया के विकासशील देश कर्ज के भंवरजाल में फंसे हैं और इससे बाहर निकलने के लिए छटपटा रहे हैं। श्रीलंका चीनी कर्ज के जाल में फंसकर दिवालिया हो चुका है। कर्ज का भारी बोझ, विदेशी मुद्रा भंडार शून्य होने से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई है। देश के पास जरूरी सुविधाओं के पेमेंट के लिए पैसा नहीं है। श्रीलंका अकेला देश नहीं है जो दिवालिया हो गया है, दुनिया के 69 देशों पर दिवालिया होने का खतरा मंडरा रहा है।
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, लेबनान-ट्यूनिशिया सहित दो दर्जन से अधिक देशों में यूक्रेन संकट और महंगाई के कारण कमोडिटीज की कीमतों में भारी वृद्धि, बॉन्ड्स में गिरावट, फूड शॉर्टेज और भयंकर बेरोजगारी सेगृह युद्ध छिड़ने की आशंका है। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, दुनिया के दर्जनों देश अगले 12 महीने विदेशी कर्ज के इंस्टॉलमेंट का भुगतान करने में असमर्थ हैं। यह कई पीढ़ियों का सबसे बड़ा डेट क्राइसिस है। इसका असर भारत पर भी पड़ने का खतरा है। वर्ल्ड बैंक ने चेतावनी दी कि विकासशील देश कर्ज के भंवर में फंसकर कंगाल हो सकते हैं।
मिस्र: यूक्रेन संकट के कारण खाद्य किल्लत से गुजर रहा, 3 माह से कम का गेहूं स्टॉक बचा।
ट्यूनीशिया: विदेशी कर्ज देश की जीडीपी के 100% पर। महंगाई 7% से ऊपर, फिर गृह युद्ध का खतरा मंडराया।
लेबनान: बेरुत ब्लास्ट में देश का सबसे बड़ी अनाज भंडार तबाह, फूड प्राइस 11 गुना बढ़ी, मुद्रा की वैल्यू 90% घटी। कर्ज जीडीपी के 360% पर पहुंचा
अर्जेंटीना: देश 9 बार कर्ज विदेशी कर्ज के भुगतान से चूकी। 10वीं बार डिफॉल्ट बचने के लिए आइएमएफ से लगाई 45 बिलियन डॉलर कर्ज की गुहार।
इतने देश कर्ज के बोझ से दबे
1. कर्ज लेनदेन का बेहतर मैनेजमेंट: कर्जदाताओं को कंटेजेंसी प्लान ऑफर करना चाहिए, जिसके मुताबिक अगर कर्ज लेने वाला वित्तीय परेशानियों से घिरा है तो उस समय कर्ज के भुगतान के लिए दबाव न डाल जाए।
2. झटकों को मैनेज करें: कम आय वाले देश हमेशा एक्सटर्नल क्राइसिस से प्रभावित होते हैं। उनका अधिकतर कर्ज विदेशी मुद्रा में होता है। ऐसे मैकेनिज्म विकसति किए जाएं जिससे गरीब देशों को बाहरी झटकों से बचाया जा सके।
3. कॉमन फ्रेमवर्क: गरीब देशों के कर्ज को रीस्ट्रक्चर करने के लिए एक कॉमन फ्रेमवर्क की आवश्यकता है। जी20 ने यह फ्रेमवर्क बनाया है जो केवल 73 देशों पर लागू है। इसके विस्तार की जरूरत है।
4. कर्ज का विकल्प: गरीब देशों को बेसिक जरूरतों को पूरा करने के लिए भी कर्ज लेना पड़ता है। अगर ये देश अपना टैक्स कलेक्शन बढ़ाएं तो स्वास्थ्य-शिक्षा जैसी जरूरतो को पूरा करने के लिए कर्ज नहीं लेना होगा।
5. जवाबदेही और पारदर्शिता: चीन जैसे कर्ज देने वाले देशों के लिए भी जवाबदेही और पारदर्शिता तय होनी चाहिए, ताकि वे गरीब देशोें की आंतरिक और विदेश नीति को प्रभावित नहीं कर सकें।
स्रोत: आइएमएफ, वर्ल्ड बैंक
अल-सल्वाडोर, पेरू, इथीयोपिया, घाना, केन्या, तुर्की और दक्षिण अफ्रीका पर कर्ज से कंगाल होने का खतरा है। इन देशों में विदेशी कर्ज जीडीपी के 70 से 100 फीसदी के करीब पहुंच गया है, इन्हें चुकाने के लिए विदेशी मुद्रा नहीं है। ये देश मदद के लिए आइएमएफ की शरण में पहुंचे हैं।

इन वजहों से दुनिया से नहीं मिली मदद
कोरोना महामारी से दुनियाभर की अर्थव्यवस्था में आई मंदी।
कर्ज लेने की लागत बढ़ी, ब्याज दरें बढ़ने से विदेशी कर्ज हुआ महंगा।
रूस-यूक्रेन जंग के कारण खाद्य पदार्थ, तेल और मेटल्स हुए महंगे।
जंग से सप्लाई चेन तबाह, बाजारों में गिरावट और दुनियाभर में तेल और ईंधन का संकट।

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