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Sudeep Dutta Success Story: गरीब मजदूर बना 1600 करोड़ रूपए का मालिक, मुश्किलों से भरा रहा सफर



Sudeep Dutta Success Story: एक व्यक्ति अगर कोई चीज ठान ले तो वह उसे पूरा करके ही रहता है. यह बात आज हम आपको इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हम आपको आज ऐसे ही एक व्यक्ति के संघर्ष के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से आज बहुत ही ऊंचा मुकाम हासिल किया है. जो किसी जमाने में चंद पैसों के लिए तरसते थे आज वह अरबों कमा रहे हैं. बता दें कि यह कहानी एक 16 साल के लड़के की है जिसने अपने दोस्त की सलाह मानकर काम के सिलसिले में महानगरी या सपनों के शहर मुंबई में अपना पहला कदम रखा.


उस वक्त उस पर मानव जैसे मुश्किलों का पहाड़ ही टूट पड़ा था क्योंकि ना खाने को कुछ पैसे थे नहीं सर पर छत थी और इन सब से भी बुरा कि उनके पिता और भाई की कुछ वक्त पहले मौत हो गई थी.


हम आपको बता दें कि इस 16 साल के लड़के का नाम सुदीप दत्ता है जो वेस्ट बंगाल के दुर्गापुर परिवार से संबंधित है. इनके पिता आर्मी में थे किंतु किस्मत साथ ना होने के कारण 1971 में एक जंग के दौरान वह शारीरिक दुर्बलता का शिकार हो गए. इनके पिता उस वक्त एकमात्र व्यक्ति थे जो घर का पूरा खर्च उठा रहे थे.

जिसके बाद यह जिम्मेदारी उनके बड़े भाई पर आ गई लेकिन फिर किस्मत ना साथ होने के कारण इनके बड़े भाई को कुछ बीमारी हो गई थी जिसका वक्त पर इलाज न करवाने की वजह से उनका शरीर पूरी तरीके से पैरालाइज हो गया था.


हद तो तब हो गई जब बेटे की ऐसी हालत देखकर पिता ने दम तोड़ दिया. दिन-ब-दिन घर की हालत और भी बिगड़ती जा रही थी जिसके बाद चारों भाई बहनों की जिम्मेदारी 16 साल के सुदीप पर आ गई थी.


सुदीप को उनके कुछ दोस्तों ने यह सलाह दिया था कि कि वे अभी घर का खर्च चलाने के लिए महज ₹15 महीने की नौकरी करना शुरू कर दें जिसके लिए हामी भर कर उन्होंने वह काम शुरू कर दिया उन्हें वेतन के साथ-साथ वहां सोने की जगह भी प्राप्त हुई.

लेकिन वहां भी उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि एक छोटे से कमरे में 20 मजदूरों को एक साथ सोना पड़ता था. सुदीप अपने ₹15 की नौकरी से कुछ पैसे बचा कर अपनी मां को भी काम पर भेजा करते थे.




किंतु उस जमाने में भी पैसे कमाने इतने आसान कहां थे. बता दें कि उन्हें अपने घर से फैक्ट्री आने जाने के लिए 40 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता था.


आपको यह भी बता दें कि फैक्ट्री में नुकसान होने की वजह से सुदीप जिस फैक्ट्री में काम कर रहा था वह फैक्ट्री बंद कर दी गई, ऐसी स्थिति में सुदीप पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी


उन्होंने उसी फैक्ट्री को स्वयं चलाने का फैसला लिया जिसके बाद उन्होंने ₹16000 की राशि इकट्ठा करें. वह दौर ऐसा था कि सुदीप अपना स्वयं का खर्चा नहीं निकाल पा रहे थे उस वक्त उन्होंने उस फैक्ट्री को चलाने का फैसला लिया. यह भी बता दे कि उन्होंने उस कठिन दौर में 7 मजदूरों के परिवार को संभालने की जिम्मेदारी भी उठाई.

उस फैक्ट्री को खरीदने के लिए सुदीप के साथ यह अग्रिम एंड तय किया गया था कि कंपनी से 2 वर्ष जो भी मुनाफा होगा उसे आधा-आधा बांटना पड़ेगा क्योंकि ₹16000 की राशि कोई बहुत अधिक नहीं थी. ऐसी स्थिति में जो कभी उस फैक्ट्री का मजदूर हुआ करता था वह उसका ट्री का मालिक बन गया.


आपको बता दें कि उस दौर में एल्यूमीनियम पैकेजिंग इंडस्ट्री की हालत गंभीर थी. कंपटीशन इतना ज्यादा था कि कुछ दिग्गज कंपनियां जैसे जिंदल अल्युमिनियम आदि कोही बड़े-बड़े आर्डर प्राप्त हुआ करते थे जिसकी वजह से उनका मुनाफा भी अच्छा खासा हुआ करता था.

लेकिन इसके बावजूद सुदीप में हार नहीं माननी उन्हें इस बात की अच्छे से खबर ठीक है अगर वह अच्छे से मेहनत करेंगे और हार नहीं मानेंगे तो वह इस मुश्किल से आसानी से बाहर आ सकते हैं. और वैसा ही हुआ उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से उस परेशानी से बाहर आना शुरू कर दी है इतना ही नहीं उनके ग्राहकों में भी वृद्धि हुई.


समय के साथ-साथ सुदीप दत्ता ने भी अपनी जगह बनाना शुरू कर दिया था लेकिन समय का पहिया एक बार और घुमा और उनके सामने एक और बड़ी परेशानी खड़ी हो गई. बता दें कि उस वक्त वर्ल्ड फेमस कंपनी अनिल और उनके वेदांत ग्रुप द्वारा इंडियन फाइल नामक एक कंपनी की शुरुआत की गई.


यह इतनी बड़ी कंपनी थी कि इनके सामने टिक पाना बहुत ही कठिन था. लेकिन जिस व्यक्ति ने इतनी बड़ी परेशानियों का सामना किया हो मजदूर से मालिक के ओहदे पर आया हो उसके सामने यह परेशानी कोई खास बड़ी नहीं थी.

सुदीप जी ने एक अलग बिजनेस स्ट्रेटजी बनाई जिससे उनके ग्राहक उन्हीं से जुड़े रहते थे और उनके बीच अच्छा खासा व्यवहार था जिसके बाद अनिल अग्रवाल की कंपनी ज्यादा टाइम टिक नहीं पाई. खास बात तो यह है कि अनिल अग्रवाल ने अपनी वर्ल्ड फेमस कंपनी को यानी इंडिया फाइल को सुदीप दत्ता को ही बेच दिया.

समय के साथ-साथ सुदीप दत्ता ने अपने बिजनेस स्ट्रेटजी से कई डूबती हुई कंपनियों को सहारा दिया और उन्हें खरीदना शुरू कर दिया. उसके बाद ऐसा भी दौर आया जब उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से इंडियन एलुमिनियम के डिस्ट्रीब्यूटर बन चुके थे. ऐसे में कहा जा सकता है कि भगवान ने 1998 से लेकर 2000 तक सुदीप की परीक्षा ली जिसमें उन्होंने उत्तीर्ण होने के रूप में 20 प्रोडक्शन यूनिट्स को स्थापित किया.


आपको बता दें कि आज के समय में सुदीप दत्ता की कंपनी ESS DEE एलुमिनियम प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का नाम मुंबई स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में दर्ज किया जा चुका है. उनके अच्छे व्यवहार और काम के कारण सुदीप दत्ता को पैकेजिंग इंडस्ट्री का नारायणमूर्ति कहा जाता है.

वर्तमान में इनकी कंपनी का रेट ₹1600 करोड़ से भी ज्यादा का है. उनके पास किसी भी चीज की कमी नहीं है जहां एक वक्त पर उन्हें खाने-पीने एवं सोने के लिए भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता था.


इतना ही नहीं जहां एक वक्त उन्हें फैक्ट्री जाने के लिए 40 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था वही आज ऐसा भी समय है जहां वह बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज जैसी गाड़ियां उनके आगे पीछे लगे रहती है.

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