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News: संगीत के नायक की एक सदी….


मनोरंजन समाचार: किसी सुरीली बंदिश की तरह वक्त फिर गा उठता है । इस लुका – छिपी के बीच वक्त के मुहाने पर एक शख्सियत की याद दस्तक दे रही है , जिसने सारी कायनात में हिन्दुस्तानी मौसिकी का परचम फहराया ।

अपने नाम के अनुरूप वे एक ऐसा रवि ( सूर्य ) साबित हुआ , जिसने पूरब और पश्चिम की सरहदों के फासले मिटाए और सात सुरों की जमीन पर इंसानियत का पैगाम लिख दिया । सात अप्रेल 1920 को बनारस में संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान और नामी वकील के घर में जन्मे रविशंकर ‘ भारत रत्न ‘ से सम्मानित एक ऐसे विलक्षण संगीतकार के रूप में प्रकट हुए , जिसने मैहर के शारदा देवी धाम में बाबा उस्ताद अलाउद्दीन खां के साए में रहकर संगीत के सबक सीखे । एक दिन गुरु के ऋण को सिर माथे रख दुनिया की सैर पर निकल पड़ा उनका यह शिष्य ।

‘ सारे जहाँ से अच्छा ‘ सुनकर प्रायः हमें इकबाल याद आते हैं , पर कम लोगों को पता होगा कि इसकी धुन पं . रविशंकर ने बनाई हैं,…….. भारतीय स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती का……पर्व जब मुंबई के एनसीपीए में मनाया गया,….. तो 14 अगस्त 1997 की रात पं.रविशंकर का कार्यक्रम….. रखा गया था । रात्रि बारह बजे समारोह का सबसे रोमांचक क्षण था जब टाटा सभागार में अपना सितार वादन रोककर , स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती का स्वागत उन्होंने खुद के बनाए ‘ शांतिमत्र ‘ से किया ।

सभागार की बत्तियां धूमिल हो चलीं और रविशंकर के स्वर संयोजन में ‘ ऊं शांति ‘ का सुरीला नाद फिजाओं में फैल गया । इसके तुरंत बाद उन्होंने सितार पर सारे जहाँ से अच्छा .. ‘ बजाया और फिर हजारों कण्ठों का समवेत स्वर गूंज उठा । उनका सितार गाता था उनकी सोच वैश्विक थी वे सच्चे अथों में भारत के सांस्कृतिक राजदूत थे । इधर शताब्दी वर्ष के निमित्त केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी , नई दिल्ली की पत्रिका ‘ संगना ‘ का आगामी अंक पंडित रविशंकर के समग्र योगदान पर केन्द्रित होगा । बेसुरे होते जा रहे इस समय में रविशंकर को यह सुरीला प्रणाम होगा ।

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