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भारत के इस गांव में दिवाली मनाने से डरते हैं लोग, सदियों से नहीं मनाई जाती दिवाली, जानिए किस अनहोनी का है डर

14 वर्ष के वनवास के बाद जब भगवान श्रीराम अयोध्या (Ayodhya) लौटे थे, तब भगवान श्रीराम के आगमन की खुशी और उनके स्वागत में दीपक जलाकर लोगों ने दिवाली (Diwali) मनाई थी। तब से यह त्यौहार मनाने का सिलसिला चल रहा है। पूरे देश में दीपावली के दिन दीपक जलाकर धूमधाम से यह पर्व मनाया जाता है। लेकिन एक ऐसा गांव भी है जहां पर लोग दीवाली मनाने से डरते हैं। उत्तर प्रदेश के गोंडा में एक ऐसा गांव है जहां सदियों से दीवाली नहीं मनाई जाती है। यहां पर दिवाली के दिन एक भी दीपक नहीं जलता है। करीब 250 की आबादी वाले इस गांव में बहुत पहले एक अनहोनी दीवाली के मौके पर हो गई थी। दरअसल दिवाली के दिन एक युवा की मौत हो गई थी, तभी से गोंडा के इस गांव में दीवाली के मौके पर मातम रहता है।

हो जाती है कोई न कोई अनहोनी
उत्तर प्रदेश में गोंडा के यादवपुरवा गांव में दीवाली का पर्व नहीं मनाया जाता। यहां के ग्रामीण दीपावली का कोई भी उत्सव नहीं मनाते। यादवपुरवा में रहने वाले लोगों का कहना है कि बहुत पहले की बता है, दीपावली के दिन एक युवा की मौत हो गई थी। उसके बाद से गांव में दीवाली नहीं मनाई जाती है। यदि दिवाली मनाने की कोशिश की भी जाती है तो, कोई अनहोनी हो जाती है । जिससे ग्रामीणें में अनहोनी का डर बना हुआ है। अब तो यह परंपरा का रूप ले चुका है। वही पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा चली आ रही है। बा दें कि इस गांव में 20 घर हैं, जिसमें करीब 250 लोग रहते हैं। दिवाली पर ये सभी लोग घर में ही रहते हैं। इस पर्व में कोई पकवान नहीं बनता है।

खामियाजा भुगतने का डर
ऐसा नहीं है कि यहां के लोगों ने दीवाली मनाने की कोशिश नहीं की। एक-दो बार जब नई बहुएं आईं तो उन्होंने इस परंपरा को तोडऩे की कोशिश की, लेकिन कोई न कोई अनहोनी हो गई। जिसका खमियाजा भी भुगतना पड़ा। कई लोग एक साथ बीमार हो गए, बच्चे भी काफी परेशानी में पड़ गए। कई लोगों को तो अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। जिसके बाद से सब ने मिलकर एक बात ठानी कि भले कुछ हो जाए, लेकिन दीवाली नहीं मनाएंगे। भले ही दीवाली के दूसरे दिन बच्चे पटाखे आदि जला लें। लेकिन दिवाली के दिन कोई उत्सव नहीं होगा।

गांव को है बेटे का इंजतार
यहां पर दीवाली न मनाने की परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी है। गांव के एक बुजुर्ग का कहना है कि गांव के लोगों को इंतजार है कि दीवाली वाले दिन गांव में कोई बेटा पैदा हो जाये या फिर गाय के बछड़े को जन्म दे। तभी इस पर्व की शुरुआत हो सकती है। वरना ऐसे ही इस गांव में दीवाली पर सन्नाटा पसरा रहेगा।

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