मध्य प्रदेशरीवा

Rewa News: 5 करोड़ 44 लाख 21 हजार के गणवेश वितरण का मामला; आजीविका मिशन जिपं से नहीं कराना चाहती गुणवत्ता का परीक्षण?

REWA NEWS: जिले की चिन्हित सरकारी स्कूलो में गणवेश का वितरण शत प्रतिशत हो चुका है। वितरण के पूर्व गुणवत्ता नियंत्रण के लिये गठित समितियों द्वारा विकासखण्डों में गुणवत्ता का परीक्षण भी किया जा चुका है। जिला पंचायत सदस्यों को जांच समिति में रखे जाने के संबंध में शासन के आदेशानुसार प्रावधान नहीं है। इस तरह की जानकारी जिला परियोजना प्रबंधक आजीविका मिशन रीवा द्वारा सामान्य सभा की बैठक में पालन प्रतिवेदन में दी गई है।

  • वितरण और गुणवत्ता दोनों पर गड़गड़झाला

जिसमें एक सदस्य ने यह प्रस्ताव किया था कि गणवेश के गुणवत्ता की जांच हेतु एक समिति का गठन किया जाय। किन्तु प्रस्तुत किये गये पालन प्रतिवेदन से पता चलता है कि आजीविका मिशन रीवा गणवेश की गुणवत्ता की जांच जिला पंचायत के सदस्यों की जांच समिति के माध्यम से नहीं करवाना चाहता। यही कारण वह पूर्व में हुये गुणवत्ता परीक्षण का हवाला देकर संभावित गड़बड़ी पर पर्दा डालना चाहता है। बताया गया है कि जिले के कुल 2752 स्कूलों में पंजीकृत 1 लाख 36 हजार 794 छात्र/छात्राओं को दो जोड़ी के मान से 2 लाख 73 हजार 588 गणवेश का वितरण किया जा चुका है। इतनी ही मात्रा में गणवेश की मांग भी की गयी थी। इनमें दर्ज छात्रो की संख्या 66847 एवं छात्राओं की संख्या 69947 थी।

गणवेश के निर्माण में कुल 201 समूहों की भागीदारी रही। आजीविका मिशन को गणवेश के निर्माण के लिये 5 करोड़ 44 लाख 21 हजार 981 रूपये प्राप्त हुये थे। किन्तु कुल कितनी राशि व्यय हुई इसकी जानकारी नहीं दी गई। जनपदवार गणवेश वितरण की प्रगति के अनुसार गंगेव में 25486, हनुमना 44902, जवा 35104, मऊगंज 23442, नईगढ़ी 19530, रायपुर कर्चुलियान 27656, रीवा 31332, सिरमौर 31078, त्योंथर 35058 सहित कुल 273588 गणवेश का वितरण किया जाना बताया गया है।

जांच से बचने और टालने का चल रहा प्रयास
गणवेश का वितरण यदि लक्ष्य के अनुसार हो चुका है और यदि पूर्व में गठित समिति द्वारा गुणवत्ता की जांच की जा चुकी है तो ऐसा कौन सा कारण है जिसके चलते जिला पंचायत की सामान्य सभा में किये गये प्रस्ताव के अनुसा दोबारा गणवेश की गुणवत्ता की जांच नहीं हो सकती। सामान्य सभा में किये गये प्रस्ताव के विपरीत यह जबाब पालन प्रतिवेदन में देना कि जिला पंचायत सदस्यों को जांच समिति में रखे जाने का शासन से कोई आदेश प्रावधानिक नहीं है यह बात किसी को भी हजम नहीं हो सकती। क्योंकि जिले की गतिविधियों को जानने व परखने के लिये जिला पंचायत की समान्य सभा को अधिकार नहीं है ऐसा प्रावधान आजीविका मिशन की गाईडलाईन में कहां से पैदा हो गया?

यदि जांच से बचने का प्रयास किया जा रहा है और उसे टालने का प्रयास किया जा रहा है तो सवाल पैदा हो रहा है कि गणवेश वितरण की जानकारी भी आंकड़ों पर आधारित है और गणवेश की गुणवत्ता भी। यह भी सही है कि यदि कोई सामान्य व्यक्ति या कोई सामाजिक संगठन शिकायत करता है कि गुणवत्ता गणवेश की ठीक नहीं है, वितरण में भी संतोषजनक नहीं है तो क्या जांच नहीं हो सकती? क्य किसी जनप्रतिनिधि याने जिला पंचायत सदस्य को कोई व्यक्ति शिकायत करता है कि स्कूलों में वितरित होने वाले गणवेश की गुणवत्ता ठीक नहीं है तो क्या उसके प्रस्ताव पर जांच समिति गठित नहीं हो सकती? क्या एक बार यदि कोई समिति जांच कर चुकी है या गुणवत्ता जांच के नाम पर खानापूर्ति करवाई जा चुकी है तो क्या दोबारा उसी प्रकरण में जांच नहीं करवाई जा सकती?

यदि गणवेश के निर्माण से लेकर वित्तीय लेनदेन में समूहों का केवल नाम उपयोग किया गया तो क्या आजीविका मिशन के भूमिका की जांच नहीं हो सकती? किन्तु यहां आजीविका मिशन रीवा ने पालन प्रतिवेदन में इस आशय का जबाब देकर कि जिला पंचायत सदस्य को जांच समिति में रखने का कोई प्रावधान ही नहीं है ऐसी जानकारी देकर गणवेश के मामले में विस्तृत जांच करवाने का सवाल पैदा कर दिया है। सवाल तो यह भी है कि सब कुछ ठीक है, अंछा है और नियमों के अनुसार हुआ है तो फिर डीपीएम जांच समिति से बचने का प्रयास क्यों कर रहे हैं? अगर जिला पंचायत की सामान्य सभा के प्रस्ताव के अनुसार जांच समिति गठित होने एवं उसमें जनप्रतिनिधि के रूप में सदस्य को शामिल करने का अधिकार नहीं है तो फिर किसे रखने का प्रावधान है?

समिति का जांच प्रतिवेदन भी बैठक में प्रस्तुत नही
गणवेश वितरण के संबंध में यदि गुणवत्ता की जांच पहले ही हो चुकी थी तो उस जांच प्रतिवेदन को समान्य सभा की बैठक में प्रस्तुत क्यों नहीं किया गया? केवल इस बात हवाला जरूर दिया है कि कलेक्टर रीवा के पत्र क्रमांक 820/गणवंश/ एमपीडीएवाई – एसआरएलएम/2022-23 रीवा दिनांक 20.12.22 एवं मु यकार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा के आदेश क्रमा 1122/ गणवेश एमपीडीएवाई-एसआरएलएम/ 2022- 23 रीवा, दिनाक 28.03.2023 को गणवेश वितरण के पूर्व गुणवत्ता नियंत्रण हेतु जिले के समस्त 9 विकासखण्डों हेतु गुणवत्ता जांच सत्यापन समिति का गठन किया जा चुका है।

किन्तु जिला आजीविका मिशन को विकासखण्डों से सत्यापन का प्रतिवेदन मिला या नहीं मिला, कब मिला इसकी कोई जानकारी पालन प्रतिवेदन में प्रस्तुत नहीं की गई। यह भी यदि मान लिया जाय कि कलेक्टर एवं सीईओ जिला पंचायत के आदेशानुसार विकासखण्ड स्तर पर गुणवत्ता जांच सत्यापन समिति का गठन किया गया था तो इन अधिकारियों के पास तो जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत होना चाहिये और यह बात स्पष्ट की जानी चाहिये कि जांच प्रतिवेदन पर सीईओ जिला पंचायत एवं कलेक्टर रीवा ने क्या इस आशय की संतुष्टि जाहिर की है कि जांच सही हुई है ओर अब कोई जांच की आवश्यकता नहीं है।

उठते रहे हैं सवाल
उल्लेखनीय है कि गणवेश के निर्माण और वितरण को लेकर सवाल तो तब से उठ रहे है जब से यह कार्य आजीविका मिष्ठन्न को सौंपा गया था। आरोप तो यह भी लग चुके हैं कि समूहों के नाम का केवल उपयोग किया जाता है जबकि पर्दे के पीछे असली गिलाड़ी तो कोई और होता जो फिक्सिंग के आधार पर पढ़ें की पीछे अनाधिकृत रूप से काम करता है। अन्यथा इस जिले में जिन 201 समूहों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण गणवेश तैयार करवाने के दावे किये गये हैं उनमें पचास प्रतिशत भी नहीं होंगे इसके कार्य में यक्ष हों।

इसलिये सवाल तो समूहों की गतिविधियों को भी परखने का है कि आजीविका मिहन जिन समूहों के नाम पर इस तरह का खेल करता है उसके पीछे वास्तविकता क्या होली है? सवाल तो यह भी उठता है कि यदि समूह इतने दक्ष से तो फिर गणवेश का निर्माण समय सीमा में क्यों नहीं हो पावा? सवाल यह भी है कि शासन द्वारा समय-समय पर निर्देश दिये जाते हैं कि शासन की लाभकारी योजनाओं का क्रियान्वयन जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति में होना चाहिये। किन्तु यहां ऐसा भी नहीं हो पाया। इससे समझा जा सकता है कि लगभग साढ़े पांच करोड़ के जिस गणवेश के वितरण का आंकड़ा आजीविका मिशन द्वारा प्रस्तुत किया गया है वह कई तरह के सवालों से घिरा हुआ है। इसलिये समय तो उसका जबाब लेगा ही।

Surendra Tiwari

I am Surendra Tiwari, Editor of the Vindhya Bhaskar. I am writing on Automobile and Tech Content from Last 5 years.

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