मध्य प्रदेशरीवा

स्वास्थ्यमंत्री के गृह जिले बीमार स्वास्थ्य सेवाएं; रीवा में 1000 बेड के प्राइवेट अस्पतालों चलाने में व्यस्त मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक

जूडा के भरोसे सुपर स्पेशलिटी व संजय गांधी चिकित्सालय, डीन पहुंचे तो ओपीडी में नहीं मिले कोर्डियोलॉजी चिकित्सक

रीवा। श्यामशाह मेडिकल कॉलेज के संजय गांधी अस्पताल की अंधोसंरचना एवं सुपरस्पेयलिटी जैसी अंधोसंरचना होने के बावजूद स्वास्थ्य सुविधाओं की दौड़ में रीवा पीछे होता जा रहा है। स्थिति यह बीस सालों में भाजपा सरकार अभी विंध्य में बेहतर स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने में विफल रही है। हालांकि इस ओर प्रयास किए गए है लेकिन यहा पदस्थ चिकित्सकों ने सरकार की मंशा पर पानी फेर दिया है। दरअसल यहां मेडिकल कॉलेज में पदस्थ चिकित्सक संजय गांधी व सुपर स्पेशलिटी में की जगह नर्सिंग होम में खोलने पर दिलचस्पी दिखा रहे है।

स्थिति यह है कि अब तक अकेले रीवा शहरी क्षेत्र में अलग अलग स्थानों में एक हजार बेड के निजी नर्सिंग होम व अस्पताल खुल चुके है। इसमें हैरान करने वाली बात यह है कि इन अस्पताल में कोई चिकित्सक तैनात नहीं है। बावजूद इनमें रोजाना मरीजों को इलाज हो रहा है। वहीं संजय गांधी चिकित्सालय व सुपर स्पेशलिटी में मरीज चिकित्सकों को इलाज कराने इंतजार करते रह जाते हैं। इसे लेकर राजनेता भी जनप्रतिनिधि भी आवाज नहीं उठाते है क्योकि उनका व उनके परिजनों का इलाज कभी होता नहीं है। सरकारी अधिकारी तो सीधे बाहर चल देते है। इस बार विंध्य से उपमुख्यमंत्री का पद मिलने और लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा की जिम्मेदारी मिलने पर लोगों खराब स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने की उम्मीद लगा रखी है।

सुपरस्पेशलिटी में डीन को नहीं मिले चिकित्सक

सुपरस्पेशलिटी मेें कोर्डियोलॉजी में चिकित्सक नहीं मिलने की सूचना में मेडिकल कॉलेज के डीन मनोज इंदुलकर औचक निरीक्षण में पहुंचे जहां ओपीडी में कोर्डियोलॉजी में डॉ के डी सिंह नहीं मिले। इस पर उन्हें नोटिस जारी किया है। वर्तमान सुपरस्पेशलिटी में दो कार्डियोलॉजी है जिनमें एक व्ही डी त्रिपाठी अवकाश है। शेष तीन चिकित्सक सुपर स्पेशलिटी को पहले ही नमस्कार कर चुके है। ऐसे में कार्डियोंलॉजी विभाग में मरीजों को इलाज नहीं मिल रहा है।

सुपर स्पेशलिटी में एक साल पहले हुई थी अंतिम सर्जरी

सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में अंतिम दिल की सर्जरी 17 जनवरी 2023 को हुई थी। 17 जनवरी को सीटीवीएस सर्जन ने 48 साल की महिला और 21 साल के युवक की ओपन हार्ट सर्जरी की थी। इसके बाद से किसी भी मरीज का ऑपरेशन सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में नहीं किया गया। तब से लेकर अब तक 12 महीने का समय गुजर गया है। एक भी सर्जरी नहीं हुई।

डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस सबसे बड़ी परेशानी

सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में अधीक्षक का पद स्वीकृत किया गया है लेकिन इस पद का वेतन कम है। मेडिकल ऑफिसर के बराबर वेतन कर दिया गया है। अधीक्षक के पद पर पदस्थ डॉक्टर की बात ही यहां के डॉक्टर नहीं सुनते। इसके अलावा सारे निर्णय मेडिकल कॉलेज से ही लिए जाते हैं। अधीक्षक खुद कोई भी निर्णय डायरेक्ट नहीं ले पाते। पूरी तरह से मेडिकल कॉलेज पर ही संस्थान निर्भर है। ऐसे में सुपर स्पेशलिटी को गति मिलने में भी दिक्कतें हो रही हैं। सुपर स्पेशलिटी में भी डाटयरेक्टर के पदस्थ किए जाने की जरूरत हैं, जिससे त्वरित निर्णय लिए जा सकें।

यह बड़े ऑपरेशन नहीं हो रहे हैं

सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में ओपन हार्ट सर्जरी, वाल्व रिप्लेसमेंट, बाईपास सर्जरी, बच्चों के दिल का ऑपरेशन, दिल में छेद का ऑपेरशन, नहीं हो रहा है। इसके अलावा फेफड़ों में गांठ, लंग्स का कैंसर का ऑपरेशन भी यहां संभव है लेकिन उपकरण के अभाव और स्टॉफ की कमी के कारण सब ठप है। योग्य डॉक्टर हैं लेकिन उन्हें काम नहीं मिल पा रहा है। सिर्फ मरीजों की जांच तक ही सीमित है।

सुपर स्पेशलिटी में डाक्टरों के 42 पद खाली

रीवा को मेडिकल हब बनते देखते हुए सब की इच्छा है। कोई भी मरीज इलाज के लिए बाहर नहीं जाना चाहता लेकिन कुछ खामियां इस मंशा पर पानी फेर रही है। सुपर स्पेशलिटी बड़ी उपलब्धि है। इसके खाली पड़े पद उपलब्धियों और आशाओं पर पानी भी फेर रहे हैं। 82 डॉक्टरों की सुपर स्पेशलिटी अस्पताल को जरूर है।

कई ऐसे विभाग हैं जिनकी शुरुआत ही नहीं हो पाई है। वर्तमान में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में सिर्फ पांच विभाग ही हैं। इसके अलावा अन्य विभाग डॉक्टरों की कमी के कारण शुरू ही नहीं हो पाए है। कार्डियोलॉजी विभाग में तो पांच डॉक्टरों ने ज्वाइनिंग के बाद इस्तीफा दे दिया। इससे इस विभाग पर भी संकट खड़ा हो गया है। इसके अलावा कई ऐसे भी विभाग हैं, जहां एक भी डॉक्टर नहीं है। इसके कारण इन विभाग को शुरू नहीं किया जा सकता है।

पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजिस्ट भी अभी तक नहीं मिल पाए हैं। नेफ्रोलॉजी में सिर्फ एक ही डॉक्टर है। नियोनेटालॉजी विभाग खाली है। यूरोलॉजी विभाग में भी कई पद खाली पड़े हुए हैं। बच्चों का ऑपरेशन यहां अब तक शुरू नहीं हो पाया है। विभाग के लिए भी डॉक्टर नही मिल पा रहे हैं। सुपर स्पेशलिटी के सारे पद भर जाएं तो रीवा को मेडिकल हब बनने से कोई नहीं रोक सकता।

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