मध्य प्रदेश

बीजेपी का मंदिर राग, महादेव दर्शन पर बंदिश : पुरुष परदनी व महिलाएं साड़ी में नही पहनी तो महादेव के नही होगे दर्शन

रीवा। उज्जैन के महाकाल मंदिर, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर की तर्ज पर रीवा जिले के देवतलाब स्थित शिव मंदिर में ड्रेस कोड लागू करने का फैसला किया गया है। निर्धारित ड्रेस कोड के मुताबिक अब पुरुषों को महदेव के स्पर्श दर्शन के लिए धोती-कुर्ता पहनना होगा और महिलाओं को साड़ी पहनना होगा। परंपरागत वस्त्रों को पहनने के बाद ही भोलेनाथ का स्पर्श किया जा सकेगा.

बीजेपी ने फिर छेड़ा मंदिर राग, महादेव दर्शन पर रोक: पुरुष परदानी और महिलाएं साड़ी में नहीं पहनेंगे तो नहीं दिखेंगे महादेव
मध्य प्रदेश के रीवा जिले के देवतलाब स्थित शिव मंदिर प्रबंध सिमिति की बैठक में समिति ने मंदिर में प्रवेश करने के लिए ड्रेस कोड निर्धारित करने का प्रस्ताव पारित किया। प्रस्ताव के अनुसार मंदिर के बाहर से हर व्यक्ति को भगवान भोलेनाथ के दर्शन मिलेंगे। लेकिन मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए पुरूषों को परदनी तथा महिलाओं को साड़ी पहनना आवश्यक होगा। मंदिर को लेकर तय की गई नई व्यवस्था के तहत अब जींस, पैंट, शर्ट और सूट पहने लोग दर्शन तो कर सकेंगे. लेकिन उन्हें शिवलिंग को छूने की इजाजत नहीं होगी। भगवान के दर्शन के लिए परिसर में एलईडी स्क्रीन लगाई जाएगी। बैठक में मध्यप्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष व देवतलाब से भाजपा विधायक गिरीश गौतम ने बैठक की अध्यक्षता की।
इस दौरान विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि देवतालाब के शिव मंदिर परिसर का पूरी तरह से विकास किया जाएगा। शिवरात्रि में यहां तीन दिवसीय शिव विवाह उत्सव का आयोजन होगा। भगवान भोलेनाथ की बारात निकालने के साथ अन्य कई कार्यक्रम होेंगे। समिति की बैठक में बैजू धर्मशाला के जीर्णाेद्धार तथा बाउंड्रीवॉल बनाने, शौचालय सुविधा के साथ दो सौ व्यक्तियों के बैठने के लिए हाल निर्माण, राजस्व कानूनों के तहत बैजू धर्मशाला को मंदिर की परिसम्पत्ति में शामिल करने तथा अन्य आवश्यक निर्माण कार्यों के संबंध में प्रस्ताव पारित किए गए। वहीं भगवान शिव के दैनिक श्रृंगार एवं भोग प्रसाद व्यवस्था के संबंध में भी प्रस्ताव पारित किया गया। अध्यक्ष ने कहा कि भगवान के श्रृंगार और भोग प्रसाद के लिए उनकी ओर से तीन सौ रुपए प्रतिदिन की राशि आज से दी जाएगी। मंदिर की साज-सज्जा, सफाई पर भी चर्चा की गई। इस दौरान एसडीएम एपी द्विवेदी सहित सुरेन्द्र सिंह चंदेल, शिवपूजन शुक्ला, कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण केके गर्ग तथा प्रबंध समिति के सदस्य उपस्थित रहे।

“शिव” की नगरी “देवतालाब”
“शिव” की नगरी “देवतालाब” का नाम ही तालाब से मिलकर बना है। देवतालाब मंदिर के आसपास कई तालाब हैं। वैसे देवतालाव में कई तालाबों का होना, यहां की विशेषता है। शिव मंदिर प्रांगण में जो तालाब है यह “शिव-कुण्ड” के नाम से प्रसिद्ध है। “शिव- कुण्ड” से जल लेकर ही श्रद्धालु सदाशिव भोलेनाथ के “पंच-शिवलिंग” विग्रह में चढ़ाने की परंपरा रही है। मंदिर के आसपास के क्षेत्रों के बुजुर्गों के अनुसार मान्यता ऐसी है कि “शिव-कुण्ड” से पांच बार जल लेकर पांचों मंदिर में जल चढ़ाया जाता है।

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देवतालाब में जल चढ़ाने के बाद पूरी होती है चारों धाम की यात्रा
देवतालाब शिव मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। चारों धाम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं की पूजा तब तक पूरी नहीं होती है जब तक देवतालाब शिव मंदिर में जल नहीं चढ़ा देते हैं। चारों धाम की यात्रा करने के बाद श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाते हैं। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचकर भोलेनाथ का पूजन करते हैं

देवतालाब में स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर में सावन माह में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है। लाखों लोग मंदिर में दूरदराज से आकर भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते हैं। देवतालाब मंदिर की ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि सुबह जब लोगों ने देखा तो यहां पर विशाल मंदिर बना हुआ मिला था लेकिन किसी ने यह नहीं देखा कि मंदिर का निर्माण कैसे हुआ। पूर्वजों के बताए अनुसार मंदिर के साथ ही यहां पर अलौकिक शिवलिंग की भी उत्पत्ति हुई थी। यह शिवलिंग रहस्यमयी है दिन में चार बार रंग बदली है।

यह है किदवंती
एक किदवंती है कि शिव के परम भक्त महर्षि मार्कण्डेय देवतालाब स्थित शिव के दर्शन के हठ में आराधना में लीन थे। महर्षि को दर्शन देने के लिए भगवान यहां पर मंदिर बनाने के लिए विश्वकर्मा भगवान को आदेशित किया। उसके बाद रातों रात यहां विशाल मंदिर का निर्माण हुआ और शिव लिग की स्थापना हुई। कहते है कि एक ही पत्थर पर बना हुआ अदभुत मंदिर सिर्फ देवतालाब में स्थित है।

मंदिर के नीचे चमत्कारिक मणि
एक मान्यता यह भी है कि इस मंदिर के नीचे शिव का एक दूसरा मंदिर भी है और इसमे चमत्कारिक मणि मौजूद है। कई वर्षों पहले मंदिर के तहखाने से लगातार सांप बिच्छुओं के निकलने की वजह से मंदिर का दरवाजा बंद कर दिया गया है। मंदिर के ठीक सामने एक गढी मौजूद थी। किवदंती है कि इस मंदिर को गिराने की जैसे ही राजा ने योजना बनाई उसी वक्त पूरा राजवंश जमीन में दबकर नष्ट हो गया। इस शिवलिंग के अलावा रीवा रियासत के महाराजा ने यही पर चार अन्य मंदिरों का निर्माण कराया है। ऐसा माना जाता कि देवतालाब के दर्शन से चारोधाम की यात्रा पूरी होती है। इस मंदिर से भक्तों की आस्था जुडी हुई। इसीलिए यहां प्रति वर्ष तीन मेले लगते है और इसी आस्था से प्रति माह हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है।

एक रात में, एक पत्थर से बनें मंदिर में स्थापित है आलौकिक शिवलिंग
रीवा के देवतालाब स्थिति शिव मन्दिर वर्षों से क्षेत्र के लोगों में आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां मंदिर में हर दिन सैकड़ों श्रद्धालु शिव मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं, देवतालाब मंदिर को लेकर वहां के रहवासिओं के अनुसार कहा जाता है की यह विशाल मंदिर एक ही पत्थर में बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण रातो-रात हुआ था और इसे स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था। देवतालाब मंदिर को लेकर बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में हुआ। ऐसा कहा जाता है कि रात को मंदिर नहीं था लेकिन सुबह जब लोगों ने देखा तो यहां पर विशाल मंदिर बना हुआ मिला था लेकिन किसी को यह जानकारी नहीं है की मंदिर का निर्माण किसने करवाया, और कैसे हुआ।

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