मध्य प्रदेश

मानव – वन्यजीव संघर्ष : खेती पर जानवरों का अटैक तो करंट और फंदा शिकार के नए औजार

खेती के प्रति बढ़ते रूझान और जंगल में मानव दखल से वन्यजीवों से टकराव बढ़ा है। इस खूनी संघर्ष में जंगली जानवरों व इंसानों के मौत के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं । मध्यप्रदेश में हर साल 50 से अधिक लोग हिंसक जानवरों के हमले में मारे जाते हैं , तो घायलों का आंकड़ा एक हजार से अधिक है वहीं जान गंवाने वाले जंगली जीव की संख्या भी एक हजार को पार कर गई है । जंगली इलाकों में खेती का दायरा लगातार बढ़ रहा है , जिसपर जीव अटैक कर रहे हैं तो उनसे बचाव के लिए किसान करंट और फंदा का सहारा ले रहे हैं। बंदूक और देसी बम की बजाय यह शिकार के नए औजार बने हैं ।

विंध्य में दस दिन में दो बाघों का शिकार, दोनों को शिकारियों ने करंट से मारा

एक दशक में रबी फसल के सीजन में बाघों व दूसरे जंगली जानवरों के हुए ज्यादा शिकार

जंगल में मानव दखल यानी खेती से बाघों की मौत का संबंध स्थापित करने के लिए नेशनल टइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ( एनटीसीए ) आंकड़े काफी है । पिछले आठ साल देशभर में बाघों की हुई मौतों के विश्लेषण से यह बात सामने आई है मृत बाघों में 70 प्रतिशत बाघ नवंबर से मई के बीच मारे गए । यह सीजन रबी फसल का होता है । इस समय किसान बोवनी से लेकर खेत की सिंचाई कटाई और गहाई तक मैदान में रहता है । यही वजह है कि वन्यजीवों और इंसानों की एक साथ मौजूदगी इस संघर्ष को बढ़ा रही है । एनटीसीए की रिपोर्ट बताती है कि साल 2012 से 2020 के बीच 857 बाघों की असामान्य मौत दर्ज की गई हैं । इनमें 600 बाघों की जान नवंबर से मई के महीनों के बीच हुई 202 के आंकड़े के साथ मध्यप्रदेश सबसे आगे है , बाघों की कुल मौतों का 25 प्रतिशत हिस्सा यहीं का था । सबसे अधिक मौत जनवरी के महीने में दर्ज की गई । इनमें शिकार के मामले भी शामिल हैं

सीधी में हाथियों से संघर्ष

मानव - वन्यजीव संघर्ष : खेती पर जानवरों का अटैक तो करंट और फंदा शिकार के नए औजार

सीधी और इससे अलग हुए जिले सिंगरौली में हाथियों से संघर्ष का लंबा इतिहास है । लेकिन रिहंद बांध और पॉवर प्लांट सहित कोयला की खदानों की वजह से यह छत्तीसगढ़ से लगी सीमा तक चाहे भले सीमित हो गया हो पर नुकसान बड़ा है बीते एक साल अकेले सीधी जिले में एक ही परिवार के तीन सदस्यों सहित लोगों की हाथियों के हमले में जान गई है । तो आधा सैकड़ा घर ढह गए दरअसल , सिंगरौली होकर सीधी तक झारखंड से आने वाले हाथियों का कॉरिडोर था हर साल ठंड शुरू होते ही जंगली हाथी झारखंड से छत्तीसगढ़ की सीमा से कनहर नदी के किनारे से होकर यहां विचरण करते हुए और महुआ की फसल खत्म होते ही लौट जाते लेकिन तीन साल इन जंगली हाथियों ने इस इलाके में ठिकाना बना लिया है । जिससे आम इंसान खासतौर से छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे जंगल में रहने वाले वनवासियों की जिंदगी दुश्वार हुई है ।

दो घटनाओं ने झकझोरा

विंध्य के सतना और सीधी जिले में महज दस दिन के अंतर में दो बाघों के शिकार ने मानव और वन्यजीव के बढ़ते संघर्ष को सतह पर ला दिया है । दोनों ही घटनाओं में पूरी समानता है वारदात में शामिल लोग संगठित गिरोह के सदस्य नहीं बल्कि आम किसान हैं । खेत की रखवाली के लिए करंट का जाल फैला रखा था और बाघ की उसी में फंसकर मौत हो गई । सतना में बाघ के अवशेष तालाब में फेंक दिए गए थे तो सीधी में लोगों ने बाघिन के शव के टुकड़े कर बोरियों में भरकर गोपद नदी में बहा दिया था दोनों ही घटनाओं के आरोपी वनवासी समुदाय से हैं ।

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