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महज शादी कर लेने से हीं नहीं मिलता महिलाओं को, पति या ससुराल की संपत्ति पर हक

Breaking News : किसी भी महिला के लिए शादी के बाद उसका अपना घर ससुराल ही होता है। कई बार ऐसा भी होता है महिला शादी के पश्चात अपने माता-पिता भाई-बहन सभी को छोड़कर ससुराल में अपना जीवन जीती है। ऐसे में सवाल उठता है कि कानूनी तौर पर महिलाओं के पति और अपने ससुराल की संपत्ति पर किसी ने महिला का कितना अधिकार होता है। ऐसे में कोई महिला अपने ही पति और ससुराल की संपत्ति पर क्या क्या अधिकार रखती है आइए जानते हैं।

तीन ऐसे कहानी जो संपत्ति के अधिकार को तय करते हैं
संपत्ति के उत्तराधिकार तय करने हैं भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत एवं हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और मुस्लिम पर्सनल लॉ की बेहद ही खास भूमिका है। इस कानून से यह तय होता है कि संपत्ति में किस का क्या अधिकार है और इस कानूनी प्रावधानों को देखने से पता चलेगा कि सिर्फ शादी हो जाने से ही महिला का पति या ससुराल की संपत्ति पर हक नहीं होता बल्कि हर परिस्थितियों पर आने वाले तमाम चीजों पर भी निर्भर करता है।
वही पति के जीवित रहते उनके द्वारा अर्जित की गई संपत्ति में पत्नी का कोई हक नहीं है। पति की मृत्यु के पश्चात ए महिला का संपत्ति पर हक होगा वही मौत से पहले पति ना कोई वसीयत किया है तो उसके मुताबिक पत्नी का संपत्ति के अधिकार पर हक होगा।
भारत का कानून महिलाओं को अपने पति से महज भरण-पोषण के लिए गुजारा भत्ता पाने का भी अधिकार देता है। तो दोनों अलग होने पर वह पति की संपत्ति पर किसी भी तरह का अधिकार नहीं रखती है।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत एक महिला को अपने ससुराल में सास ससुर या पैतृक संपत्ति में किसी भी तरह का हक नहीं होता है। किंतु पति की मृत्यु के पश्चात विधवा महिला अपने ससुराल की संपत्ति पर अधिकार पूर्णता जमा सकते है। पैतृक संपत्ति में उतनी ही संपत्ति का हिस्सा पा सकती है जितना उसके पति का बनता है। भारत की सर्वोच्च न्यायालय में 1978 में गुरुपद खंडपप्पा मगदम बनाम हीराबाई खंडप्पा मगदम मामले में संपत्ति के बारे में ऐतिहासिक फैसला लिया था।
सुप्रीम कोर्ट के वकील गौरव भारद्वाज बताते हैं कि शादी के बाद महिला समझती है कि उनके पति और ससुराल की सारी संपत्ति पर उनका हक है। जबकि कानूनी स्थिति बिल्कुल विपरीत है। मैं शादी कर देने से महिला का अपने पति या उसकी ससुराल की संपत्ति पर किसी भी तरह का हक नहीं होता है जब तक की महिला और उसके पति में साझेदारी ना बनाई जाए।

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