रीवा। संसदीय सीट रीवा के लिये चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हो गई है। आगामी 26 अप्रैल 2024 को लोकसभा चुनाव निर्धारित है। सन् 1952 से रीवा में लोकसभा के चुनाव हो रहे हैं। यहां पिछले दो बार से लगातार भाजपा चुनाव जीत रही है जबकि कांग्रेस के लिये 20 साल से सूखा पड़ा हुआ है।
सन् 1999 में कांग्रेस उम्मीदवार रहे सुंदरलाल तिवारी सांसद चुने गये थे उसके बाद कांग्रेस के लिये दिल्ली दूर हो गई। लगातार दो बार से भाजपा के जनार्दन मिश्रा सांसद निर्वाचित हो रहे हैं। पार्टी ने पुनः उन पर भरोसा जताया है। कांग्रेस लोकसभा का सियासी सूखा खत्म करने के लिये ऐसे भगीरथ की खोज में जुटी है जो कांग्रेस की अप्रत्याशित जीत का गंगावतरण कर सके।
प्रदेश से लेकर दिल्ली तक का कांग्रेस नेतृत्व यह जानता है कि रीवा के लोकसभा रण में भाजपा को सीधी टक्कर कौन दे सकता है?
यदि कांग्रेस नेतृत्व किन्तु, परंतु, लेकिन पर विचार करना छोड़ देता है तो कांग्रेस की टिकट जल्द फायनल हो जायेगी। सन् 1952 से सन् 2019 तक के लोकसभा चुनावी इतिहास पर गौर फरमाया जाय तो रीवा की जनता ने कई मर्तबा चौंकाने वाले परिणाम दिये हैं।
मतदाताओं के मानस को भुनाने की कोशिश प्रायः राजनैतिक दल एवं उनके उम्मीदवार करते हैं किन्तु रीवा संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं ने जिसे उचित समझा उसे अपना प्रतिनिधित्व सौंपकर दिल्ली भेज दिया।
यहां के मतदाताओं ने राजा हो या रंग दोनों को एक ही तराजू में बिना किसी भेदभाव के तौलने का काम किया। जिस तरह देश में आज भारतीय जनता पार्टी स्थापित है, कमोवेश दौर कांग्रेस का भी था। कांग्रेस के नाम से उम्मीदवार चुनाव जीत जाते थे। इसका आंकलन इसी बात से किया जा सकता है कि म.प्र. के गठन के बाद जब सन् 1957 में लोकसभा के चुनाव हुये थे तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रीवा से अपने रसोईये एस.डी. उपाध्याय को टिकट दे दिया था और श्री उपाध्याय चुनाव भी जीत गये थे। नेहरू जी की कृपा से श्री उपाध्याय इसी रीवा सीट से सन् 1962 के चुनाव में भी कांग्रेस उम्मीदवार थे और सांसद चुने गये थे।
दल नहीं व्यक्तित्व का चुनाव
रीवा जिले के मतदाता लोकसभा चुनावों में चौंकाने वाले नतीजे देकर सुर्खियां बटोर चुके हैं, या मालूम लोकसभा चुनाव 2024 में भी यहां के मतदाता कोई नया व हैरतअंगेज इतिहास गढ़ दें?
रीवा रियासत के महाराजा मार्तण्ड सिंह को दो बार निर्दलीय चुनाव जिताकर रिमही जनता ने दिल्ली भेजा था। उसने दल नहीं व्यक्तित्व को चुना था। सन् 1971 में रीवा महाराज पहली बार सांसद चुने गये थे। परंतु सन् 1977 के संसदीय चुनाव में उसी जनता ने रीवा महाराजा को चुनाव हराने का काम किया था। पूर्णरूपेण दृष्टिबाधित यमुना प्रसाद शास्त्री जो जनता पार्टी के उम्मीदवार थे, को अपना सांसद चुना था। सन् 1980 में रीवा महाराजा पुनः सांसद निर्वाचित हुए थे।
सन् 1984 का चुनाव उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर लड़ा था और सांसद बने थे। सन् 1989 में रीवा क्षेत्र के मतदाताओं ने दृष्टिबाधित श्री शास्त्री को दोबारा सांसद चुना था। इस चुनाव में कांग्रेस ने रीवा महारानी श्रीमती प्रवीण कुमारी सिंह को प्रत्याशी बनाया था किन्तु यहां के मतदाताओं ने उन्हें अस्वीकार कर दिया।
प्रथम भाजपाई सांसद चन्द्रमणि त्रिपाठी
रीवा लोकसभा क्षेत्र से भीम सिंह पटेल के बाद बसपा से बुद्धसेन पटेल (1996) एवं देवराज सिंह पटेल (2009) सांसद निर्वाचित हो चुके हैं। वर्तमान में दोनों नेता बसपा को तिलांजलि दे चुके हैं।
रीवा से पहले भाजपाई सांसद चन्द्रमणि त्रिपाठी चुने गये थे। उन्हें रिमही जनता ने दो बार सांसद चुनकर दिल्ली भेजा था। सन् 1998 एवं 2004 में श्री त्रिपाठी रीवा सांसद निर्वाचित हुये थे।
सन् 1999 में रीवा जिले के मतदाताओं ने कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी को सांसद चुनकर दिल्ली भेजा था लेकिन सन् 2009 एवं 2014 के चुनाव में इसी जनता ने उन्हें घर भी बैठाने का काम किया था।
जनता का मूड 2019 के लोकसभा चुनाव में भी नहीं बदला था जब सुंदरलाल तिवारी की मृत्यु उपरांत कांग्रेस ने उनके सुपुत्र सिद्धार्थ तिवारी को भाजपा के जनार्दन के खिलाफ मैदान में उतारा था। कांग्रेस को सहानुभूति वोट मिलने की उम्मीद थी। भाजपा के जनार्दन मिश्रा सन् 2014 से लगातार निर्वाचित सांसद हैं और हैट्रिक लगाने एक बार फिर चुनावी कुरुक्षेत्र में उतरे हुए हैं।
धराशायी हो चुके धुरंधर
गौरतलब है कि देश में जब 10वीं लोकसभा के लिये सन् 1991 में चुनाव हुये थे तब रिमही जनता ने कुछ ऐसा उलटफेर किया जिसके कारण रीवा विश्वस्तरीय चर्चा में आ गया था। यहां के मतदाताओं ने जहां धुरंधर राजनेता व कांग्रेस उम्मीदवार पंडित श्रीनिवास तिवारी को धराशयी कर दिया था वहीं देश को भीम सिंह पटेल के रूप में बहुजन समाज पार्टी का पहला सांसद देकर विश्वपटल पर रीवा को चर्चा में ला दिया था।