रीवा

Rewa News: जीवन कौशल के नाम पर हुआ करोड़ों का गोलमाल

स्कूलों में गतिविधियां शून्य, राशि हजम, यूथ लब के नाम पर खेल

सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को शिक्षा के अतिरिक्त जीवन कौशल आत्म सम्मान आत्मविश्वास का विकास करने के उद्देश्य ओजस क्लब एवं ओजस यूथ क्लब गठित करने के निर्देश दिए गए थे। इस संबंध में लोक शिक्षण एवं राज्य शिक्षा केंद्रों दोनों की तरफ से समय-समय पर निर्देश दिए गए थे। सबसे पहले इस तरह का प्रयोग हाई स्कूलों एवं हायर सेकेंडरी स्कूलों में किया गया था। जहां प्रति स्कूल को 25 हजार रुपए जारी किए गए थे।

वहीं नईगढ़ी क्षेत्र के प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों को 5 हजार रुपए प्रति स्कूल के हिसाब से जारी किए गए थे। किंतु ओजस क्लब का गठन हुआ या नहीं उसकी गतिविधियों का संचालक नियमित रूप से हुआ या नहीं यह बात आज तक खोज का विषय बनी हुई है। उसका उपयोग हुआ अथवा खातों में ही यथावत रखी हुई है। इसका कोई हिसाब नहीं अभी पुराना हिसाब हुआ नहीं और नया फरमान फिर जारी हो चुका है। इसलिए पुन: उसी तरह से करोड़ों का फजीर्वाड़ा होने जा रहा है।

निर्देश के बाद भी नहीं हुई जांच
राज्य शिक्षा केंद्र ने 27 मार्च 2023 को जारी अपने आदेश में ओजस क्लब की गतिविधियों की मॉनिटरिंग के निर्देश जारी किए थे। बताया गया कि इसके पहले भी 2 फरवरी 2022 एवं 16 नवंबर 2022 को भी इस संबंध में जिलों को पत्र जारी किए गए थे किंतु ओजस क्लब की गतिविधियों की जानकारी संकलित नहीं हो पाई। जहां से राशि जारी की जाती है, वहां से बाद में उपयोगिता भी मांगी जाती है। उसी समय पता चलता है कि संबंधित योजना की गतिविधियों का हाल क्या है। किंतु लगता है कि कोई निरीक्षण नहीं हुआ और मामला निर्देशो तक की सीमित रह गया।

उपयोगिता पर उठ रहे सवाल
राज्य शिक्षा केंद्र ने अपने इतने समय के बाद जारी की गई राशि की उपयोगिता मांगा है। 31 मार्च 2023 की स्थिति में उपयोगिता प्रस्तुत करना था। किंतु सूत्रों के अनुसार अभी तक उपयोगिता की जानकारी तैयार नहीं हो पाई स्कूलों को जारी की गई राशि का उपयोग हुआ या नहीं हुआ अब स्कूलों के प्रमुख एवं वाहन के क्लब प्रभारी ही बता सकते हैं।

हालांकि जिस तरह से एक साल से बार-बार पत्राचार किया जा रहा है। उससे तो यही लगता है कि ओजस क्लब के नाम पर जो राशि जारी की गई थी उसे या तो हजम कर लिया गया अथवा खातों में ही वह राशि लंबित पड़ी हुई है। जिसे ओजस के नाम पर ठिकाने लगाकर फर्जी उपयोगिता भी तैयार की जा सकती है, क्योकि राज्य शिक्षा केंद्र इस तरह की कई गतिविधियों को संचालित करने के आदेश देकर दस से बीस हजार की राशि स्कूलों को देता है।

किंतु उसके बाद कोई मानीटरिंग नहीं होने से उसका सही उपयोग नहीं होता। बाद में लंबे समय के बाद हिसाब मांगा जाता है तो पता चलता है कि योजना का विधिवत तरीके से संचालन नहीं हो पाया। इस मामले में जिम्मेदारों का पक्ष नहीं मिला।

क्लब के गठन का क्या था मुख्य उद्देश्य
सरकारी स्कूलों में ओजस क्लबों के गठन का मुख्य उद्देश्य क्या था। इस संबंध में जो निर्देश जारी किए गए थे उसमें बताया गया था कि विद्यार्थियों को खाली समय में स्वास्थ्य एवं सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहने भावनात्मक एवं बौद्धिक रूप से सक्षम बनाने के लिए इस तरह के क्लबों का गठन करना था। सप्ताह में दो दिन इस तरह की गतिविधियों का संचालन करने के निर्देश थे इस संबंध में ऊपर से सुझाव दिए गए थे जहां विज्ञान, गणित, कंप्यूटर, स्पोकन इंग्लिश, कला, लोक कला, प्रदर्शन, नाटक, संगीत, नृत्य, नुक्कड़ नाटक, बागवानी आदि एवं विस्तृत क्षेत्र बताया गया था।

जिससे बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार जोड़ने के लिए ओजस क्लबों का गठन किया जाना था। इस तरह क्लबों का गठन इसलिए भी करना था। क्योंकि कोरोना के बाद जिस तरह से मानसिक स्थिरता एवं भय की स्थिति बनी थी। उससे उवरना भी एक उद्देश्य था। की बच्चों को उनकी शिक्षा के साथ ऐसे विषय की जानकारी स्कूलों में मिलनी चाहिए ताकि वह भविष्य के स्वावलंबी बन सके। अपना भविष्य स्वयं निर्धारित कर सके।

एक तरफ से यह योजना प्रेरक जैसी थी। जिसमें बच्चों को विभिन्न गतिविधियों से जोड़ने का अवसर देना था। किंतु सरकारी स्कूलों में इस तरह की गतिविधियों का संचालन हुआ या नहीं हुआ अब यह खोज का विषय है। अभी तक जारी की गई राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी न होना यह सावित करता है कि गतिविधियों का संचालन नहीं हो पाया अथवा अनियमित रूप से किया गया।

हर गतिविधि का वहीं हाल
स्कूलों के लिए फर्नीचर की राशि जारी होती है, तो राशि ब्यय हो जाती है और फर्नीचर नहीं पहुंच पाता। पेयजल जल व्यवस्था के लिए राशि जारी होती है। तो उससे आरओ के नाम पर फजीर्वाड़ा हो जाता है। गणवेश के लिए राशि जारी होती है तो साल भर गणवेश का निर्माण ही चलता रहता है। अंत में गणवेश का वितरण भी नहीं हो पाता।

इसी तरह से अन्य गतिविधियों का भी हाल दिखाई देता है। मरम्मत के लिए राशि जारी होती है।तो उसमें भी हेरा फेरी हो जाती है। चाक बत्ती से लेकर खेल सामग्री की खरीदी में भी यही सब चलता रहता है। पता चल रहा है कि ओजस क्लब के नाम पर जारी राशि में भी बंदर बांट हो सकती है। इसलिए सवाल उठता है कि सरकारी स्कूलों में जिन गतिविधियों में योजनाओं के नाम पर राशि जारी होती है उसका कितना उचित उपयोग होता है या नहीं होता, इसकी समय पर मॉनिटरिंग क्यों नहीं होती।

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