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रीवा के मेडिकल हब बनने में डॉक्टरों की कमी और प्राइवेट प्रैक्टिस बन रही रोड़ा: सुपर स्पेशलिटी में 82 डॉक्टरों के पद खाली; डॉक्टर निराश होकर छोड़ रहे नौकरी

उप मुख्यमंत्री तथा स्वास्थ्य परिवार कल्याण एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री राजेन्द्र शुक्ल के गृह क्षेत्र में ही स्वास्थ्य विभाग की हालत बद से बदतर होती जा रही है, डॉक्टर निजी प्रैक्टिस में व्यस्त हैं और सरकारी अस्पतालों की कुर्सीया खाली पड़ी है.

Vindhya Bhaskar News Online: रीवा को मेडिकल हब बनते देखते हुए सब की इच्छा है। कोई भी मरीज इलाज के लिए बाहर नहीं जाना चाहता लेकिन कुछ खामियां इस मंशा पर पानी फेर रही है। सुपर स्पेशलिटी बड़ी उपलब्धि है। इसके खाली पड़े पद उपलब्धियों और आशाओं पर पानी भी फेर रहे हैं। 82 डॉक्टरों की सुपर स्पेशलिटी अस्पताल को जरूर है। कई ऐसे विभाग हैं जिनकी शुरुआत ही नहीं हो पाई है।

वर्तमान में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में सिर्फ पांच विभाग ही हैं। इसके अलावा अन्य विभाग डॉक्टरों की कमी के कारण शुरू ही नहीं हो पाए है। कार्डियोलॉजी विभाग में तो पांच डॉक्टरों ने ज्वाइनिंग के बाद इस्तीफा दे दिया। इससे इस विभाग पर भी संकट खड़ा हो गया है। इसके अलावा कई ऐसे भी विभाग हैं, जहां एक भी डॉक्टर नहीं है। इसके कारण इन विभाग को शुरू नहीं किया जा सकता है।

पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजिस्ट भी अभी तक नहीं मिल पाए हैं। नेफ्रोलॉजी में सिर्फ एक ही डॉक्टर है। नियोनेटालॉजी विभाग खाली है। यूरोलॉजी विभाग में भी कई पद खाली पड़े हुए हैं। बच्चों का ऑपरेशन यहां अब तक शुरू नहीं हो पाया है। विभाग के लिए भी डॉक्टर नही मिल पा रहे हैं। सुपर स्पेशलिटी के सारे पद भर जाएं तो रीवा को मेडिकल हब बनने से कोई नहीं रोक सकता।

डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस सबसे बड़ी परेशानी
विंध्य का सबसे बड़ा अस्पताल संजय गांधी स्मृति चिकित्सालय है। लेकिन यहां के अधिकांश डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस में व्यस्त रहते हैं। पीजी छात्रों के भरोसे ही यहां की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं चल रही हैं। यही वजह है कि यहां भती होने वाले मरीज बाहर
इलाज के लिए जाने को मजबूर होते हैं। सीनियर डॉक्टरों ने खुद के अस्पताल खोल लिए हैं। अधिकांश समय स्वयं के अस्पताल पर देते हैं। संजय गांधी अस्पताल में भती मरीजों की तरफ किसी को ध्यान ही नहीं जाता। यहां भती होने वाले मरीजों को समुचित इलाज ही नहीं मिल पाता। यही वजह है कि यह अस्पताल रेफरल सेंटर बन कर रह गया है। यदि डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर रोक लगे तो मरीजों का बाहर जाना रुक जाएगा।

यहां पाठ्यक्रम तक नहीं शुरू हो पाए हैं
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में डॉक्टरों की कमी के कारण सारे विभाग शुरू नहीं हो पाए हैं। ऐसे में स्पेशलिटी पाठ्यक्रम का शुरू होना दूर की कौड़ी जैसा है। यहां एक भी प्रोफेसर नहीं है। यही वजह है कि कोई स्पेशलिस्ट वाले कोर्स शुरू नहीं हो पा रहे हैं। यहां सह प्राध्यापक तो बन गए लेकिन प्रोफेसर नहीं है। डीएम और एमसीएच कोर्स शुरू होना है। कार्डियक और न्यूरो में एमसीएच की डिग्री मिलेगी। मेडिसिन से जुड़े कोर्स में डीएम की डिग्री दी जाएगी। यहां भी एसएस मेडिकल कॉलेज के जैसे ही कोर्स संचालित किया जाना है लेकिन प्रोफेसर की कमी के कारण कोर्स शुरू नहीं हो पा रहे हैं।

17 जनवरी 2023 को हुई इनकी अंतिम सर्जरी सुपर स्पेशलिटी
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में अंतिम दिल की सर्जरी 17 जनवरी 2023 को हुई थी। 17 जनवरी को सीटीवीएस सर्जन ने 48 साल की महिला और 21 साल के युवक की ओपन हार्ट सर्जरी की थी। इसके बाद से किसी भी मरीज का ऑपरेशन सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में नहीं किया गया। तब से लेकर अब तक 11 महीने का समय गुजर गया है। एक भी सर्जरी नहीं हुई।

डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस सबसे बड़ी परेशानी
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में अधीक्षक का पद स्वीकृत किया गया है लेकिन इस पद का वेतन कम है। मेडिकल ऑफिसर के बराबर वेतन कर दिया गया है। अधीक्षक के पद पर पदस्थ डॉक्टर की बात ही यहां के डॉक्टर नहीं सुनते। इसके अलावा सारे निर्णय मेडिकल कॉलेज से ही लिए जाते हैं। अधीक्षक खुद कोई भी निर्णय डायरेक्ट नहीं ले पाते। पूरी तरह से मेडिकल कॉलेज पर ही संस्थान निर्भर है। ऐसे में सुपर स्पेशलिटी को गति मिलने में भी दिक्कतें हो रही हैं। सुपर स्पेशलिटी में भी डाटयरेक्टर के पदस्थ किए जाने की जरूरत हैं, जिससे त्वरित निर्णय लिए जा सकें।

सुपर स्पेशलिटी में 82 डॉक्टरों के पद खाली डॉक्टर निराश होकर छोड़ रहे नौकरी

यह बड़े ऑपरेशन नहीं हो रहे हैं
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में ओपन हार्ट सर्जरी, वाल्व रिप्लेसमेंट, बाईपास सर्जरी, बच्चों के दिल का ऑपरेशन, दिल में छेद का ऑपेरशन, नहीं हो रहा है। इसके अलावा फेफड़ों में गांठ, लंग्स का कैंसर का ऑपरेशन भी यहां संभव है लेकिन उपकरण के अभाव और स्टॉफ की कमी के कारण सब ठप है। योग्य डॉक्टर हैं लेकिन उन्हें काम नहीं मिल पा रहा है। सिर्फ मरीजों की जांच तक ही सीमित है।

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