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बिहार का सबसे अजीब गांव जहा हर रोज वनवास पर जाते है ग्रामीण, जानिए रहस्य

आपने अक्सर अथाओ रामायण में देखा पढ़ा व सुना भी होगा कि भगवान रघुवीर दशरथ पुत्र राजा राम 14 वर्ष वनवास पर गए थे जिनके साथ छोटे भाई लक्षण तथा धर्म पत्नी सीता माता भी उनके साथ 14 वर्ष वनवास में व्यतीत किये थे । लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज भी कोई गांव ऐसा है जहां लोग वनवास जातें हैं। जिहा हा आपने सही पढ़ा है, दरसल बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के बगहा के नौरंगिया गांव स्थित है। जहां लोग आज भी वनवास जातें हैं यह लंबे समय से चली आ रही इब गांव कि अनोखी परंपरा है यह गांव हर साल वैशाख की नवमी के दिन तकरीबन 12 घंटे तक के लिए गांव से बाहर वनवास पर चले जाते हैं और गांव पूरी तरह खाली हो जाता है ठीक उसी प्रकार जैसे लाकडाला में सड़के गाव पूरी तरह सांत नजर आ रहे थे। गांव पुरी तरह थारु समुदास जुड़ा हुआ हैं।

परंपरा के बारे मे बताया जाता है

बताया जा रहा है कि इस गांव की यह परंपरा लगभग 100 से भी अधिक सालों से चली आ रही है जिसमें सभी गांव के लोग बाहर निकल जातें हैं तथा अपने साथ अपने पालतू जानवर को ले जाते हैं वही कहा जाता है कि यह परंपरा उन्हें देवी के प्रकोप से छुटकारा दिलाती है और उन्हें कई बिमारियों से भी दुर रखतीं है जैसे हैजा चेचक पहले इन बिमारियों का यहाँ काफी प्रकोप था साथ ही बताया जाता है कि यहां कई सालों पहले प्राकृतिक आपदा और महामारी ने गांव को जकड़ लिया तदा अचानक आग भी लग जाती थी इन्ही सभी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए यह लोग एक दिन वनवास पर जातें हैं जो कई सालों से यह प्रथा चली आ रही है.

देवी मां ने दिया था सपना

गांव कि इस परंपरा के बारे में कहा जाता हे कि एक बाबा परमहंस साधू ने देवी मां का सपना देखा था जिसमें उन्होंने पूरे गांव वालों को वनवास ले जाने के लिए कहा था। तब से यहां हर साल इस रिवाज का पालन किया जाता है। नवमी पर, लोग अपने घरों को छोड़ देते हैं और पूरा दिन भजनी कुट्टी, वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में बिताते हैं, जहां वे वहां देवी दुर्गा की पूजा करते हैं।

प्रशासन ने लगाई थी रोक

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कहा जाता है कि वन प्रशासन ने शुरू में जंगल में इतने लोगों देखकर रोकने की कोशिश की थी, लेकिन बाद में, उन्होंने अपने असफल प्रयासों के कारण हार मान ली

शिक्षित युवा भी मनाते है परंपरा

नौरंगिया गांव में वनवास की इस परंपरा को आधुनिक व शिक्षित युवा पिड़ी भी अपना रहे हैं। मिडिया रिपोर्ट से कि माने तो स्नातक पास गांव के ग्रामीण युवा धर्मेंद्र कुमार के बताते है कि 1 दिन के वनवास से गांव में शांति रहती है इसलिए इस परंपरा को आज भी हम लोग निभाते हैं। वही थारू समाज के नेता महेश्वर काजी भी बताते है कि इस बनवास के कारण दैविक प्रकोप गांव में नहीं आता है। और शांति पूर्वक यहां के ग्रामीण अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

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