Court Decision: इलाहाबाद कोर्ट ने एक फैसले में सुनवाई करते हुए कहा कि अगर किसी सरकारी सेवक ने अपनी पहली पत्नी के रहते हुए दूसरी शादी की तब भी उसे नौकरी से निकला नहीं जाए सकता है। हाई कोर्ट ने हाल ही में हुए एक सरकारी कर्मचारी की पहली शादी को लेकर दूसरी शादी करने के आरोप में उसे नौकरी से बर्खास्त के फैसले को रद्द कर दिया गया। कोर्ट ने याचिका करता के सामने कहा कि यह सजा अन्याय पूर्ण है क्योंकि कथित तौर पर दूसरी शादी पर्याप्त रूप से कोर्ट में साबित नहीं हो सकी है।
इस मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र ने बताया कि कर्मचारी भले ही दूसरी शादी की हो किंतु उसे नौकरी से निकला नहीं जा सकता है क्योंकि अप सरकारी सेवक आचरण नियमावली के मुताबिक सरकारी कर्मचारी की दूसरी शादी के मामले में केवल मामूली सजा का ही प्रावधान है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने बताया कि तथ्यात्मक और कानूनी प्रस्ताव पर विचार विमर्श करते हुए कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 में कहा गया है कि इस न्यायालय या प्राधिकारियों के सामने किसी भी तरह की सामग्री नहीं है। ऐसे में यह मानना की पहली शादी के अस्तित्व के दौरान व्यक्ति ने दूसरी शादी करने का अनुमान लगाकर या याचिकाकरता को दंडित करने के साथ तथ्य और कानून के अनुरूप काम किया है। यहां तक कि जब तक सरकारी कर्मचारी की तरफ से उपरोक्त कृत्य स्थापित नहीं किए जाते हैं। तब तक वह केवल मामले दंड ही समझा जाता है।