मध्य प्रदेश / जबलपुर। डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर में विधि पाठ्यक्रम बीते 13 वर्ष से बिना वैध मान्यता के कानून की पढ़ाई चल रही है। इसका खुलासा मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में दायर याचिका से हुआ। इस पर कोर्ट ने भी हैरानी जताई कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआइ) से वैध मान्यता प्राप्त किए बिना एक दशक से भी ज्यादा समय से छात्रों को कानून पाठ्यक्रमों में प्रवेश दे रहा था।
नामांकन से किया इनकार
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याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि राज्य बार काउंसिल विवि की मान्यता के मुद्दे के कारण उन्हें नामांकन देने से इनकार कर रहा है। कानून स्नातकों ने बार काउंसिल में वकील के रूप में नामांकन के लिए दिशा-निर्देश भी मांगे। पीठ ने कहा कि कानूनी शिक्षा के नियमों के अनुसार, कानून पाठ्यक्रम प्रदान करने वाले कॉलेज या विवि को बीसीआइ से मान्यता प्राप्त होनी चाहिए, फिर यह समझना होगा कि वे कैसे पाठ्यक्रम संचालित कर रहे।
सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने केंद्र, विश्वविद्यालय, राज्य बार काउंसिल और बीसीआइ को नोटिस जारी किया है।
केंद्रीय विश्वविद्यालय के कानून स्नातकों द्वारा याचिका दायर की गई है। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार याचिका में आरोप लगाया गया कि विश्वविद्यालय में 3 वर्षीय और 5-वर्षीय कानून पाठ्यक्रमों के लिए विवि की संबद्धता 2005-06 से 2010-11 तक वैध थी।
याचिकाकर्ताओं ने सुनाया दर्द
याचिकाकर्ताओं में से एक आस्था चौबे न्यायिक परीक्षा की तैयारी कर रही हैं। कुछ राज्यों में एक वकील के रूप में व्यावहारिक अनुभव की आवश्यकता होती है। वहीं, एक अन्य याचिकाकर्ता आस्था साहू की ओर से बताया गया कि एक लॉ फर्म में नौकरी हासिल की, जिसके लिए उन्हें ऑफर लेटर में उल्लिखित शर्तों के तहत स्टेट बार काउंसिल पंजीकरण प्रमाण-पत्र जमा करना होगा।
उन्होंने यह भी बताया कि आगामी अखिल भारतीय बार परीक्षा (एआईबीई) में उपस्थित होने में असमर्थ हैं। सरकार की ओर से पीठ को बताया गया कि विश्वविद्यालय के कानून विभाग ने मान्यता नवीनीकृत करने की औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं और बीसीआइ द्वारा निरीक्षण भी हो चुका है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई 18 नवंबर को तय करने का आदेश दिया।