शाहिद नकवी / प्रयागराज। महाकुंभ करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। महाकुंभ सिर्फ एक मेला नहीं है बल्कि यह आस्था, परंपरा और हिंदू संस्कृति का संगम है। श्रद्धालुओं के लिए यह एक पवित्र एहसास है। जिसका इंतजार सभी श्रद्धालुओं को बेसब्री से रहता है। इस साल 13 जनवरी से लगने जा रहा महाकुंभ का मेला कई मायनों में बेहद खास होने वाला है। इस बार 144 साल बाद पूर्ण महाकुंभ लग रहा है। सरल शब्दों में समझें तो 12 साल लगातार 12 वर्षों के तक लगने के बाद पूर्ण महाकुंभ लगता है। जो 144 साल बाद आता है।
कुंभ मेला बहुसंख्यक हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक है. ऐसी मान्यता है कि कुंभ में संगम तट पर स्नान करने से मोक्ष मिलता है। महाकुंभ को केवल प्रयागराज में ही आयोजित में किया जाता है.प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का पवित्र संगम होने के कारण इसका अलग धार्मिक महत्व है।
महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से 26 फ़रवरी के बीच उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में होगा। कुंभ मेले के पीछे हिंदू धर्म की पौराणिक कहानी है। इसके मुताबिक़ समुद्र मंथन के दौरान जब राक्षसों और देवताओं के बीच अमृत को लेकर संघर्ष हुआ था।इस संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार,नासिक और उज्जैन में गिरी थीं। यही कारण है कि कुंभ का आयोजन सिर्फ़ इन चार स्थानों पर किया जाता है।महाकुंभ का इतिहास वर्षों पुराना है। प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ का महत्व अधिक माना गया है।
दरअसल, यहां तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। जिस वजह से यह स्थान अन्य जगहों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। बता दें सरस्वती नदी लुप्त हो चुकी हैं लेकिन, वह धरती का धरातल में आज भी बहती हैं। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इन तीन नदियों के संगम में शाही स्नान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए प्रयागराज में इसका महत्व अधिक माना जाता है।
इस साल के पहले साल 2019 में अर्धकुंभ और साल 2013 में पूर्णकुंभ का आयोजन प्रयागराज में किया गया था। पौराणिक मान्यता यह भी है कि अमृत से भरे कलश को स्वर्ग पहुंचने में 12 दिन लगे थे और देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक साल के बराबर होता है, यही वजह है कि पूर्ण कुंभ को हर 12 साल में आयोजित किया जाता है।
संगम की रेती पर अब तम्बुओं की नगरी आबाद हो चुकी है। कल्पवास के लिए कल्पवासी मेला क्षेत्र में पहुंच चुके हैं।बारिशों वाली गंगा सिमट चुकी है। किनारे पर पूरे नगर की बसाहट हो चुकी है। 600 किमी लंबी चकर्डप्लेट की सड़कें हैं। इस छोर को उस छोर से मिलाने वाले 30 पैंटून पुल हैं। इस बार रेती पर 4,000 हेक्टेयर में महाकुंभ नगर बसाया गया है। आसरा देने लाखों तंबू मजबूती से खड़े हैं। 13 किमी इलाके के 25 सेक्टर में एआई ऑपरेटेड खंभे और चैट बोट्स के जरिये एक महीने के लिए मानो समुद्र मंथन वाला सतयुग तीर्थराज के डिजिटल युग में उतर आया है।
पेशवाई का स्वागत भी बेटी की बरात जैसा हो रहा है।पेशवाई पहुंचती है तो उसमें मौजूद बैंडवाले इन साधुओं के ठीक सामने रुक जाते हैं। शिविर में पहले स्नान की तैयारियां चल रही हैं। रथ तैयार किए जा रहे हैं। बैंड बाजे की बुकिंग हो रही है। अखाड़े के बीचों बीच कई किमी दूर से नजर आनेवाला लाल-भगवा धर्म ध्वजा लहरा रहा है।
पौष पूर्णिमा 13 जनवरी को है इस दिन से ही महाकुंभ का भी आगाज हो रहा है। पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। लेकिन, पौष मास में आने वाली पूर्णिमा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। साथ ही इस दिन से महाकुंभ का आरंभ भी हो रहा है। हिंदू धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन दान पुण्य और योग ध्यान करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। साथ ही जरुरमंदों को दान पुण्य करना चाहिए। वैसे तो पूर्णिमा के दिन किसी भी समय आप स्नान कर सकते हैं क्योंकि, पूर्णिमा का दिन वैसे ही पवित्र दिन माना जाता है। लेकिन, इसके बाद भी लाभ चौघड़िया सहित कई शुभ मुहूर्त में आप स्नान दान कर सकते हैं।